कविताअन्य
बुद्धपूर्णिमा
१.
वैशाख
दिवस पूर्णिमा
लुंबिनी वर्तमान नेपाल
कपिलवस्तु शाक्य वंश में
गण प्रमुख शुद्धोधन के घर
माता माया देवी की कोख से
सिद्धार्थ ने लिया था पुण्य रुप अवतार
माता को खो दिया मात्र सातवें दिन
प्रजापति गौतमी मां ने था पाला
रोक सका न नवजात पुत्र
न मोहा सद्यप्रसूता नारी
दुःख कारण निवारण
हेतु सब
त्यागा।
२.
जब
रुग्णावस्था, वृद्धावस्था
मृत्यु को जाना
त्याग दिया राजसी बाना
तज वैभव, सुख-समृद्धि,परिवार
मोह-माया से मुक्त हो चले
धरा संन्यासी भेष करने सत्य की खोज
आयु मात्र उनतीस वर्ष कठिन तप ठाना
बोधगया पीपल तले छ: वर्षों की
कठिन तपस्या का फल पाया
आत्मज्ञान से मानवता को
आलोकित कर डाला
भगवान बुद्ध
कहलाए।
३.
तृष्णा
का त्याग
खोले ज्ञान चक्षु
जन्म नहीं, कर्म प्रधान
धर्म,प्रेम,अहिंसा,त्याग सुखकारी
संताप निवारण चाहो अष्टांगिक मार्ग हितकारी
भारतभूमि से उपजे दोऊ हिन्दू और बौद्ध
बुद्ध धर्म के संस्थापक स्वंय महात्मा बुद्ध
बुद्ध पूणिमा को जन्म और महापरिनिर्वाण
प्रथम धर्म उपदेश सारनाथ में
धर्म चक्र प्रवर्तन
धर्म प्रचार
जगजाना।
गीता परिहार
अयोध्या