लेखआलेख
*क्षिप्रा मैया*
क्षिप्रा नदी, कर्करेखा स्थल से उत्तर प्रवाहमान एकमात्र नदी है। इसका उद्गम स्थल महू छावनी से 17 कि मीटर मानपुर के पास काकड़ी वर्डी स्थान से विंध्या की जानापाव पर्वतमाला है। यह परशुराम ऋषि का जन्म स्थल भी है। इस मालवा की गंगा को भगवान शिव के खप्पर से अवतरित माना जाता है।
इंदौर, धार, देवास, मन्दसौर व उज्जैन जिलों से बहती है या सीमाएँ छूती है। देवास के पास क्षिप्रा टेकरी से उज्जैन पधारती है। सहायक नदियाँ खान से उज्जैन के त्रिवेणी संगम व गम्भीर से महिदपुर में मिलती है। 196 कि मी बहने के बाद रतलाम के सिपावारा स्थान पर माँ अपनी बहना चम्बल से मिल जाती है। बाद में चम्बल यमुना से और अंततः यमुना के साथ यह गंगा मैया में समा जाती है। यह उज्जैन को तीनों ओर से घेर कर नगर को करधुनि पहना देती है।
माँ अमृत सम्भवा, पापघ्नी ज्वर्घ्नी के तट पर बसी उज्जैन नगरी राजा विक्रमादित्य की राजधानी रही है। यहाँ सांदीपनि आश्रम ज्योतिष शाला व कई घाट हैं। महाकाल ज्योतिर्लिंग की नगरी में श्मशान भी चक्रतीर्थ है। हर बारहवें वर्ष विश्व प्रसिद्ध सिंहस्थ मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान व पितरों का तर्पण घाटों पर होता है।
सरला मेहता