कविताअतुकांत कविता
ये ज़िन्दगी
द्वारे द्वारे वन्दनवारे
मुस्काती ज़िन्दगी
हंसते गाते मुखड़े देख
गीत गाती ज़िन्दगी
सिसकती झुर्रियों के बीच
अश्रु बहाती ज़िन्दगी
दर्दों की दुनिया देख कर
लँगड़ाती ज़िन्दगी
कुचली कली के दुखों पे
शरमाती ज़िन्दगी
हैवानियत की हद कहाँ?
है बौराती ज़िन्दगी
उलझी डोरें रिश्तों की भी
सुलझाती ज़िन्दगी
प्यार से संग उड़ती पतंगें
नहीं कटाती ज़िन्दगी
डोलती कश्ती को कभी
नहीं डुबोती ज़िन्दगी
बिन तैरे ही मझधार पार
नहीं कराती ज़िन्दगी
सुप्त सिंह के मुख में मृग
लाती नहीं ज़िन्दगी
बुलन्द हौंसलों को ही
है बढ़ाती ज़िन्दगी
मंज़िल को हाथों में देने
नहीं आती ज़िन्दगी
पहला कदम तो बढ़ा राहें
खुलवाती ज़िन्दगी
दिल में उतरे सज्जनों को
संभालती ज़िन्दगी
दिल से उतरे से सम्भलना
है सिखाती ज़िन्दगी
सरला मेहता
स्वरचित
इंदौर