कविताअतुकांत कविता
*समय*
*समय समय की बात है यारों
कभी घी घना तो कभी मुट्ठी भर चना
समय से पहले व किस्मत से ज़्यादा
ना किसी को मिला,ना ही मिलेगा।
*यह नचाता इंसान को कठपुतली सा
महल के राजा को रंक बना देता
एक रोड़पति, करोड़पति बन जाता।
सीता वनवासी व सुदामा राजा
*समय को कस कर थामे रहो
रमी के खेल में सही पत्ता चुनते रहो
करने से ही कुछ हांसिल होता है
कोशिश करने वालों को हार नहीं देता
*समय, मौसम उम्र हिसाब से आता है
इसका गणितीय सूत्र बड़ा क्लिष्ट है
इसका हल कोई खोज नहीं पाया है
बस इसके हाथों का लट्टू बन पाया है
*समय है कम व लम्बी है मंजिल
ए मुसाफ़िर, तेज़ कदम चलता चल
तपस्या के पथ पर,विराम नहीं देना
साथ चलनेवालों का भी साथी बन जाना
सरला मेहता
सरला मेहता
इंदौर