कहानीलघुकथा
#शीर्षक
धूल वाली लड़की ...
विगत चार वर्षों से चल रहे हेमा के अनवरत इंतजार की घड़ियां समाप्त होने को हैं ।
यों तो उसका कोई रिश्ता तरुण के साथ नहीं पर क्या करे वह अपने दिल के हाथों मजबूर जो है ।
तरुण की घोर तन्द्रा टूटने को है ।
वह पिछले दिनों का जो कुछ याद कर कर पा रहा वह सपना जितना ही अस्पष्ट और धुँधला है ।
स्कूल के बरामदे में हाफपैंट पहने वह लड़की खड़ी थी।
जब तरुण उसका नाम पूछने ही वाला था कि वह टीचर को आते देख ठिठक कर आगे बढ़ गई थी ।
आ...हाँ ... बहुत छोटा था , नहीं थोड़ा बड़ा हो चुका था , किशोरावस्था में था।
वह ऐसी लड़की थी , जिसे पेड़ों पर चढ़ने और शरारतें करने में मजा आता था।
जिसे अपने भाईयों के साथ क्रिकेट खेलने में मजा आता था और जो आसमान की बुलंदियों को छूने की तमन्ना रखती थी।
बाद के दिनों मे मालूम हुआ , उसका नाम हेमा था स्कूल के बाहर वाले बरगद के नीचे जितनी देर वे धूल में खेलते रहते उतनी देर भूल जाते कि अब वो बड़े हो गए थे ,
वे अपनी उम्र भूल जाते सिर्फ एक बँधन सा याद रहता था
बरगद के पेड़ की एक ओर उसका घर था और दूसरी ओर स्कूल।
और उस दिन ... हाँ उस दिन क्या हुआ था ... ?
स्कूल से वापस लौटने में तरुण की किताबें गिर गई थीं और इसके पहले कि वह झुक कर उठाता,
उस लड़की ने जो छोटी और दुबली-पतली सी थी ,
झुक गई थी किताबें उठाने के लिए।
हाँ याद आया ,
तभी सामने से तेज गति वाली बस के चपेट में आती हेमा को धक्का देते वह खुद गिर पड़ा था उसका सर पत्थर से जा टकराया आगे फिर कुछ याद नहीं ।
उसे लगा जैसे वह महीनों से भटक रहा है कब से उस सपने वाली शाम में ही जी रहा है।
लेकिन अभी तक कोई आदमी , कोई घर और बाबा नहीं दिखाई दे रहे।
अचानक उसे याद आया , वह लड़की , उसे नाम याद आया ,
- हाँ हेमा ,
वो कँहा गई ?
तभी उसकी नजर सामने खड़ी हेमा पर टिकी जिसने तरुण के होश में आने का चार साल लम्बा इन्तजार किया है ।
तरुण आश्वस्त होता जा रहा है।
उसने फिर दिमाग पर जोर डाला ।
कौन है यह लड़की ? इसका नाम क्या है ? कँहा देखा है इसे ?
सपने में तो नहीं ?
यह तो बिल्कुल पहचानी हुई सी लग रही है तो क्या यही वह धूल वाली लड़की है ?
लेकिन वह तो हाफपैंट पहनती थी ,
यह सलवार- समीज में है और इसकी आँखें कितनी चंचल है।
शरीर इतना माँसल सोचते हुए उसने हेमा के हाँथ पकड़ लिए ,
" अरे सुनो तुम अपना नाम तो बताओ अब आगे मैं कहाँ जाऊं स्कूल से निकले हुए और यहाँ आए हुए मुझे काफी वक्त हो गया अब घर वापस कैसे जाऊँगा मेरी मदद करोगी ? "
हेमा आगे बढ़ उसके सर को सहलाते हुए एकबारगी मीठे स्वर में बोली , " करूंगी ना " ।
सच में ये दिल के रिश्ते भी कितने प्यारे होते हैं जिसे वह अब मन-प्राण से निभाने को आतुर है।
सीमा वर्मा ©®