कहानीलघुकथा
*वैशाख की धूप*
मौसम परिवर्तन के विषय में बारह मासों में बहस छिड गई। टिप टिप वर्षा रानी के हिमायती सावन राजा खड़े होकर बोले, "हालांकि तमाम कीचड़ हम फैला देते हैं, फ़िर भी खुशियों की बौछारें हम ही लाते हैं।बिन बरसात ख़राब हालात। हम भोजन पानी की पूर्ति पर पाबंदी लगादें तो क्या हाल होगा ? सोचा है कभी। भैया भूलो मत, जल ही जीवन है।"
ठंड के प्रतिनिधि पूस माह ने कम्बल सम्भालते अपनी बात रखी, "देखो भई, कहने को हम हल्कू व पूनी जैसे गरीबों को सिवा ठिठुरन देने के और कुछ नहीं करते। किन्तु वातावरण में जलीय ठंडाई तो लाते हैं। ये नमी फ़सल के लिए जरूरी है। फ़ल सब्जियों की बहार स्वास्थ्य में चार चाँद लगा देती है। अरे भई, खाओ पीयो और मौज मनाओ।"
अब ग्रीष्मा का पक्ष रखने के लिए वैशाख राज मंच पर आए, " ठंड व बारिश ने अपने खूब गुणगान गा लिए। आज के जमाने में अपना पक्ष रखे बगैर काम नहीं चलता है। वैसे लोग हाय हाय कर मुझसे चिढ़ते हैं।
लेकिन यदि मैं पानी को नहीं तपाऊँ तो वाष्प कौन बनाएगा, काले बादल कैसे घुमड़ेंगे और बरखा रानी भला कैसे बरसेगी? चलो खेत लहलहा गए लेकिन फ़सल पकेगी कैसे? और पकने के बाद सुखाया नहीं तो सब सड़ जाएगा। चाहे छाता तानो, गॉगल्स लगाओ या कूलर ए सी में बैठो, वैशाख की धूप तो सहनी पड़ेगी।"
सभा समाप्ति पर सभी माहों ने हाँ में हाँ मिलाई।
सरला मेहता
इंदौर