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बरसो रे मेघा - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

लेखआलेख

बरसो रे मेघा

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आलेख
बरसो रे मेघा राजा,,,

भारत के लिए कहा जाता है,,,कभी यहाँ दूध की नदियाँ बहती थी। यानी जल की नदियाँ तो कलकल करती ही होगी।
आज परिस्थितियां इसके विपरीत हो गई हैं। नदियाँ बहना क्या चलना भी भूल गई हैं। कुंठित हो नाला बन सिसकती रहती हैं। बहाने को आँसू भी नसीब में नहीं हैं।
सचमुच एक ज़माना था जब पत्थर के जंगल नहीं हुआ करते थे। सीमेंट चूने के गिने चुने घर थे,बस कवेलू वाले गोबर मिट्टी से लिपे पुते हवादार आशियानें अधिक थे। जल का संवर्धन भी प्राकृतिक रूप से हो जाता था।
आँगन घरों के आसपास की जमीन को पत्थरों से पाटा नहीं जाता था।और धरती माँ अनमोल बूंदों को अपने वक्षस्थल में समाकर सहेज लेती थीं। नलकूपों के जरिए माँ की छाती को घायल नहीं किया जाता था।
घने पेड़ों के झुर्मुठों व घरों की छतों पर बनी नेवती से वर्षा का जल छन छन कर व्यर्थ नहीं बहता। धरती की विशाल गोद में समा जाता था। अब वही जल पक्के भूतल पर यहॉं वहॉं बहते बहते सूख जाता है। पूर्व में नालियों व पोखरों का पानी माटी सोख लेती अथवा नदी समंदर में मिल जाता। अब धरती माँ को सीमेंट या ब्लॉक्स से ऐसा पाट दिया गया है कि मजाल चुल्लू भर पानी भी प्यासी धरती को मिल जाए। नतीज़ा मिट्टी रेत बनती जा रही है।
वो अल्हड़ दिन ,,,गर्मियों में लबालब भरी नदी में तैरना ,नहाना और नदी किनारे उत्सव मनाना, शामें गुजारना
या नौका विवाह करना एक सपना भर राह गया है।
बारिश की झड़ी भी लगातार कई दिनों तक लगती थी। नतीज़न चारों तरफ़ हरियाली का नज़ारा होता था ।
औद्योगिकरण के नाम से अंधाधुन्द पेड़ों की कटाई ने नदीं तालाबों को रेत की खदानें या खेल के मैदान बना कर रख दिए हैं। मूरख मानव ने कूड़े करकट से पावन कही जाने वाली नदियों का मार्ग अवरुद्ध कर दिया। जल को सहेजना है, नदियों की नियमित सफाई करनी है। उन्हें पशुओं का स्नानघर और अपना धोबी घाट नहीं बनाना है। पर्यावरण के शुद्धिकरण हेतु वृक्षरोपण करना व पुराने पेड़ों की भी सुरक्षा करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
हम नियमित रूप से अपने शरीर व घरों की सफ़ाई करते हैं वैसे ही जल संसाधनों की भी देखभाल करनी है। ताकि हमारे बच्चे बरसात में भींगते हुए फिर से गा सके," पानी बाबा आया ककड़ी भुट्टा लाया " और नदियों में छई छई छपाक लगा कर खूब खेल सके। हमारी पावन नदियां पुनः श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक बन सके।
देश के विकास में सहायक हो सके। और हम गा सके,,,,बरसो रे मेघा मेघा,,,,।
सरला मेहता

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