Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेम कहानियाँ

चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐

  • 176
  • 27 Min Read

#शीर्षक #
चिरकुमारी ...
अंक ४
कल आपने पढ़ा
कल्याणी आश्वस्त है पीउ के प्रति अब आगे ...
मैं पीऊ और मेरी बचपन से ही अन्तरंग सहेली मैत्री ,
एक ही स्कूल में साथ-साथ पढ़ते हुए नवीं कक्षा पास कर जब हम दोनों दसवीं में पंहुची तब अलग- अलग बिल्डिंग में जाने लगी थीं।
मैत्री हाई स्कूल वाले में और मैं सीनियर कैम्ब्रिज वाली में ।
आगे पढा़ई अधिक हो जाने के कारण हम दोनों का एक दूसरे से मिलना भी कम हो गया था ।
फिर भी मैं कभी- कभी अपने घर के पीछे वाले रास्ते से होती हुई मैत्री के घर उससे मिलने चली जाया करती ।
अब कल्याणी सुकून की तलाश में रोज सुबह अपने क्वार्टर के सामने बने पार्क में घूमने चली जाती है ।
पिछले कितने ही सालों से यह उसकी आदत बन चुकी है जिसमें एक दिन का भी नागा होने से उसके दिमाग में सुरसरी होने लगती है ।
इधर कुछ दिनों से पीऊ भी उसके साथ हो लिया करती है , घर से निकलते वक्त एक खाली डलिया उसके हाँथो में रहता जिसमें वह बागीचे के मौली श्री के पेड़ से नीचे गिरे फूलों को चुन लेती है ।
उस दिन जब कल्याणी टहल और थक कर बेंच पर बैठी हुई अपने ख्यालों में डूबी सोच रही है ।
कि पार्क में आने वालों की संख्या तो धीरे - धीरे बढ़ ही रही है ।
सब कुछ यथावत है तो क्या सिर्फ उसे ही लगता है कि हर कुछ बदल गया है ?
अपने अन्तर्मन में झांक कर देखती है तो उसे वहाँ अपनी जगह पीऊ का अक्श दिखाई देता है ।
कभी नन्ही फिर कभी जवाँ - जवाँ सी पीऊ ,
मन आँगन भी वैसा ही अब कल्याणी के मन के कैनवास पर सिर्फ़ पीऊ की छवि ही उभरती है ।
कल्याणी ने जीवन में अनेक उतार चढ़ाव देखे हैं ।
वह यह सोंच कर सहम जाती है कि अगर कभी राघव आ गए तब क्या होगा ?
मन में हर समय विचारों का मथंन चलता रहता है फिर भी उपर से शांत रह कर सभी क्रिया- कलाप निभाए जाती है ।
अब तो पीऊ भी उसके ही रंग में रंगती जा रही है वैसी ही शांत समझदार सुलझी-सुलझी ऊन के नर्म मुलायम गोले सी ।
तभी उधर से भागती - हाफंती पीऊ पीछे से आकर अपने जमा किए फूलों की बारिश कल्याणी पर कर ताली बजा हसंने लगी ,
" ओ मासी मां की भालो लागच्छेन "
और उसकी हंसी देख कल्याणी एकदम से सकपका गई ओह यह तो राघव की हंसी है समीरा की झलक लिए ।
पीऊ की खनखनाती हुयी हंसी कल्याणी को बहुत भली लगी एक मधुर स्मित सी उसके अधरों पर फैल गई थी ।
जिन्दगी में सच्चा प्यार बहुत मुश्किल से मिलता है हम किसी एक को प्यार तो कर सकते हैं पर कौन हमें प्यार करेगा यह तय नहीं कर पाते ।
कल्याणी ने बस यही तय करना छोड़ दिया है ।
अब जानते हैं राघव की कथा...
निर्धन परिवार से आया मैं अपनी प्रतिभा के बल पर ही स्कौलरशिप पाकर महाविद्यालय तक पंहुच पाया परिवार वालों ने हांथ उठा लिए थे आखिर पिता कब तक मेरी पढाई का अतिरिक्त खर्च के बोझ उठाते ।
लेकिन मेरी आशाऐं तो अपार थीं बहुत उंचे सपने पाल रक्खे थे मैंने ।
निराश हो कमजोर व्यक्तित्व वाला मैं एक दिन ,
मां- बाप , भाई - बहन सभी का चोला उतार फेंका था जिनके भारी बोझ से मैं कभी उबर नहीं पाता और ना ही उस कैदखाने जैसे घर की चौखट लाँघ पाता ...
महाविद्यालय पंहुच मेरे सामने सपनों का नया आसमान था ।
प्रारंभ में कल्याणी की मीठी बातें कितनी प्यारी लगती थीं उसके कालेज पंहुचने का इन्तजार करना मन को कितना भाता था ?
और कल्याणी भी तो भविष्य में उसके साथ की दुनिया सजाने के सपने संजोने लगी थी ...
लेकिन धीरे-धीरे यह महसूस होने पर कि कल्याणी का साथ खुद मेरे द्वारा निर्धारित लक्ष्य के परिणाम तक पंहुचाने में नाकाफी हैं ।
जिसके आधे-अधूरे ख्वाब लिए मैं अपने गांव वाले घर तक को पीछे छोड़ आया हूँ।
सम्भवतः इसके बाद ही शायद मैं धीरे- धीरे कल्याणी से विमुख हो उच्च वर्गीय धनिक समीरा से प्रभावित होता चला गया ।
मुझे समीरा में अपना उज्जवल भविष्य दिखने लगा था और अन्त में मेरे दिल और दिमाग की जँग में दिमाग की जीत हुई ।
फिर समीरा ने भी तो हांथ पकड़ कर कहा था ,
" चलो साथ चल कर देखती हूँ कंहा तक चलते हो " ।
समीरा ने सोंचा था शायद राघव जिन्दगी की तन्हाई दूर कर देगें ।
लेकिन राघव ?
वे तो धीरे - धीरे अपना असली रंग दिखाने लग गए थे।
समीरा से विवाह करने के पश्चात मैं ने छिपाने लायक कुछ भी नहीं समझा था
" कि मैं उसके बाबा के पैसों की बदौलत विदेश जा कर रिसर्च करना चाहता हूँ "।
जबकि समीरा के बाबा इसके लिए तैयार ही नहीं हो रहे थे ।
उनके अनुसार तो मुझको को यंही रह कर उन्हें विशाल कारोबार संभालने में मदद करनी चाहिए थी।
यह सुन कर मैंने तो मानों आसमान ही सर पर उठा लिया था ।
और तभी शुरू हो गये थे समीरा की मायूसियों और अकेले पन के दिन उसके अन्दर यह बात घर कर गई थी और वह टूट सी गई ।
भयंकर यातना वाले दिन मानों अपनी अदम्य इच्छाओं की पूर्ति ना होते देख समस्त निराशाओं के वज्रपात राघव समीरा पर ही फोड़ते ,
अब राघव को लगने लगा था वह एक ऐसे सफर पर चल चुका है जो कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेता ।
तभी हम दोनों. के जीवन में पीऊ का आगमन हुआ था ।
नन्हीं घुँघराले बालों वाली पीऊ
राघव और समीरा की " पीऊ " ।
लेकिन राघव की उंची महत्वाकांक्षाओं को पीऊ की मासूमियत भी बांध नहीं सकी थी अधिक दिनों तक ।
उसके लिए विश्व के सर्वश्रेष्ठ संस्थान में चयनित होना अपने- आप में महत्ति उपलब्धि थी ।
फिर आखिर एक दिन उसनें अपनी हद तोड़ते हुऐ समीरा से कहा था ,
" मेरे साथ जीना चाहोगी तुम या बाबा के पदचिन्हो पर चलना " ?
" मुझे नहीं मालूम तुम मेरी बात कितना समझ रही हो पर यह अवश्य लगता है तुम चाह कर भी मेरे इस दर्द को बांट नहीं पाओगी ? "
मैं जा रहा हूं कब लौटूंगा , लौटना हो पाएगा भी या नहीं यह नहीं जानता ?
और उसकी तरफ टुकुर - टुकुर देखती पीऊ के सर पर हांथ फेर कर बाहर निकल गया था ।
समीरा सिर नीचे झुकाए बड़बड़ा रही थी ,
" तुम होते कौन हो अपने बारे में अकेले सोंचने वाले जब जो मर्जी हुयी कर बैठे पहले कल्याणी को छला अब मुझे ! "
तुम खेलो अपनी जिन्दगी से ,
मेरी फिक्र मत करो अभी तक खुद को संभाला है अब आगे भी संम्भाल लूगीं यह कहते हुए सर उठाया था ।
यह क्या वहाँ था कौन उसकी सुनने वाला ?
राघव तो कब के निकल चुके हैं।
समीरा कुछ पल यूं ही बैठी रही बिखरी हुई सी फिर प्रयत्न करके कल्याणी को फोन लगा फफक पड़ी थी ।
कल पीऊ की कहानी उस की जुबानी ...

सीमा वर्मा
©®

FB_IMG_1620214726382_1620482600.jpg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG