कवितालयबद्ध कविता
कविता
शीर्षक- आशा-दीप जलाए रखना
माना, अभी है रात अंधेरी,
तिमिर घनेरा छाया है।
जित देखूं, उत मायूसी है,
भय-शंका का साया है।
जहरीली अब हवा हुई है,
सांसो से महंगी दवा हुई है।
शहर सूना, वीरान हुआ है,
इक डर, दिल का मेहमान हुआ है।
जो हैं साथ, जाने कब बिछड़ जाएं,
फूल गुलशन के, कब बिखर जाएं।
पर रात अंधेरी हो कितनी भी,
जुगनू कहां चमकना छोड़ते हैं।
सूरज को तो उगना ही होता है,
दिन कब निकलना छोड़ते हैं।
फिर रात की कालिमा पर,
सूर्य की लालिमा जीतेगी।
तुम मन में आशा-दीप जलाए रखना,
यह रात अंधेरी बीतेगी।
मुस्काएंगे लब फिर से,
पंछी फिर से गाएंगे।
आज दूर हैं बेशक उनसे,
कल अपनों से मिल पाएंगे।