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चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

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चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐

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लम्बी कहानी ...
#शीर्षक
चिरकुमारी ... अंक २
कल आपने पढ़ा कल्याणी राए अपने बरामदे में बैठी बात-चीत में मशगूल हैं अब आगे ...
कल्याणी मासी और उनकी जिन्दगी की जद्दोजहद से सर्वथा अनभिज्ञ पीऊ दूध के प्याले को टेबल पर रख उनके गले में दोनों हाँथ डाल बोली , " मासी मां मैं खेलने जाऊँ और सीढियां उतर गई । "
अभी पीऊ महज बारह बर्ष की है छह बर्षों में अठारह की हो जाएगी ।
फिर ... ?
" तब की तब देखी जाएगी "
यह सोच कल्याणी ने अपना सर कुर्सी के पीछे टिका लिया और आँखें बन्द कर अतीत के गलियारे में पहुंच गई ।
अगर कालेज के दिनों में उनकी समीरा घोष से मुलाकात ना होती तो ?
कस्बाई शहर से आई कल्याणी कालेज के महानगरीय रंग - ढंग में अपने को सहज नहीं पा रही थीं ।
उस वक्त सखी समीरा ने ही उन्हें संभाला था ,
ये और बात है कि फिर उसकी वजह से ही उन्हें आजीवन अविवाहित रह जाना पड़ा।
कालेज के दिनों की शुरुआत में राघव के हृदय में कल्याणी के लिए ही कोमल भाव उपजे थे ।
लेकिन बाद के दिनों में ना जाने किन कारणों से राघव ने उनकी जगह समीरा को चुन लिया।
कल्याणी ने हृदय मजबूत कर उसके इस निर्णय पर मौन स्वीकृति दे दी थी ।
खैर कारण जो भी रहे हों वे अब उस त्रिकोणीय प्रेम कथा से उबर यथार्थ के कठोर धरातल पर खड़ी हैं और पीउ का जीवन संवारना ही उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य बन गया है ।
लेकिन ऐसा क्या हुआ कि राघव और समीरा की बेटी पीऊ ही अब कल्याणी के जीवन का एकमात्र सम्बल बन कर रह गई है ?
आइए जानते हैं राघव और समीरा के विवाह के उपरांत की कथा ।
" सुहाग रात की सेज पर बैठी समीरा कितनी खुश है ... उसने अपने लिए चाँद - सूरज भरा आसमान सजाया है जहाँ वह राघव के साथ जन्नत तक जाएगी ..."
उसने सोंच रक्खा था अब वो खूब बातें करेगी ,खूब कहेगी और खूब सुनेगी भी ।

लेकिन फिर जो बदलाव हुए थे उसने तो समीरा के आजाद पंखों पर जैसे तेजाब ही छिड़क दिया ।
वह हर रात कैसे तड़पी ,कैसे बिलखती थी ।
राघव कैसे उसके आत्मसम्मान और सतीत्व को चोट पँहुचाते और वह रोज ही अपने को अपमानित महसूस कर अपने घायल वजूद को सहलाती थी ।
दिन मेंं देवता स्वरूप राघव रात में दानव बन जाते है ।
यह बाद के दिनों में पता चला दरअसल दोहरे चरित्र वाले राघव अत्यंत दरिद्र परिवार से थे और समीरा तो उनके लिए सफलता के आसमान पर पँहुचने की सीढियां मात्र ।
उसके बाबा की अकूत सम्पत्ति को हथियाने की माध्यम भर थी ।
उसकी यह सच्चाई समीरा और उसके परिवार वालों के सामने जल्द ही उजागर हो गई थी ।
फलस्वरूप अपने उद्देश्य की पू्र्ति ना होते देख उसका व्यवहार समीरा के प्रति दिन पर दिन कठोर होता जा रहा था । और शायद उससे पीछा छुड़ाने के लिए ही वह सदा के लिए विदेश चला गया था ।
उसके इस असंयमित व्यवहार और लगातार होने वाले शारीरीक दोहन के फलस्वरूप समीरा टूट कर गंभीर बीमारी की शिकार हो गई थी ।

इधर राघव की जगह उसके छोटे भाई प्रबोध ने ले ली थी वह आए दिन समीरा के घर के चक्कर लगाने लगा था ।
" बोएदी आप पीऊ को मेरे साथ जाने दें " समीरा अन्दर तक काँप गई वह प्रबोध की नजर अच्छी तरह पहचानती थी ।
उसकी भयंकर रूग्ण दशा देख प्रबोध की नजर कब से उसकी सम्पत्ति और पीऊ पर थी यह समीरा से छिपी नहीं थी ।
वह समीरा से पीऊ को अपने सँरक्षण में लेने के लिए लगातार धमकियां दे रहा था ।
जिसे वह मरते दम तक होने देना नहीं चाहती थी ।
कोई अन्य रास्ता ना देख फिर समीरा को अपनी अन्तरँग सखी कल्याणी ही मजबूत सहारे के रूप में दिखाई दी थी ।
पत्र और फोन द्वारा उसे सारा कुछ अवगत करा और अपने तेजी से गिरते हुए स्वास्थ्य की दारूण दशा बता उनसे क्षमा माँग ली थी एवंम पीऊ को अपने सँरक्षण में रख पालन पोषन करने की भीख माँगी थी ।
अब आगे...
इस बदलते प्रकरण और तेजी से घटते घटनाक्रम में सूखी नदी सी बहती कल्याणी के अन्दर की औरत फिर से जिन्दा हो गई है ।
समीरा की इस करुण प्रस्ताव से पिघल गई थीं वे आखिर पत्थर तो नहीं थी।
अचानक उन्हें लगा जैसे किसी ने उन्हें " माँ "
कह कर पुकारा हो ,...उनकी उँगली पकड़ी हो ...गले में बाँहे डाल कर उसका चेहरा चूम लिया हो ......
ओह यह नन्हीं पीऊ की आवाज है ऐसा सोंचते हुए उन्होंने समीरा के प्रस्ताव पर हामी भर दी ।
फिर आनन- फानन में गोद लेने के प्रक्रिया की कागजी कारवाई सम्पन्न हुयी थी ।
समीरा के मरने के उपरांत वे पीऊ को अपने पास ले आई थीं ।
और आज पीऊ उनके सूने जीवन में निर्झर बहती पहाड़ी झरने सी हलचल मचाती जीवनदायिनी साबित हो रही है।

क्रमशः ...

सीमा वर्मा

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दादी की परी
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