कविताअन्य
मैं खुश हूँ मेरी झोपड़ी मे।।
बेशक आलीशान होगा, तुम्हारा महल,,
नही कमी होगी वहा किसी भी सामान की,,
सब होगी जरूरी चीजे बेशक आराम की,,
एक अलग ही नजारा होगा जानता हूँ,,,
मैं तुम्हारे महल मे ।
जानता हूँ कि महल मे रहने से मेरा
नाम भी होगा, सारा दिन आराम
बस आराम ही होगा, नही जरूरत होगी
करने की मेहनत मुझे ,मेरे एक इशारे पर
कोई ना कोई मेरे सामने खडा़ होगा।।
पर मैं खुश हूँ मेरी झोपड़ी मे,
जहा मुझे अच्छा लगता है,
अपनो के साथ रहना, जहा बेशक ए. सी
वाले कमरे नही पर खुले आसमान की
हवा दिल को प्रसन्नकर देती है।।
अनिल धवन सिरसा
स्वरचित एवं मौलिक