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*जीत जाएँगे हम*
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन,,,,,,,।
जब जब आपदाएँ विपदाएँ आई हैं, हमने कभी हार नहीं मानी। चाहे देश दंगों से दहल रहा हो, चाहे सीमाएँ पड़ोसियों की नापाक हरक़तों से युद्ध की त्रासदी झेल रही हो, सुनामी लहरों ने धावा बोला हो,,,हम कभी हारे नहीं। हमनें, सब एक के लिए, एक सबके के लिए सिद्धांत पर एक जुट होकर हर क्षेत्र में परचम लहराया है। हर नागरिक ने एक दिन या एक माह की पगार दी, महिलाओं ने अपने गहनें दान किए और बच्चों ने अपनी गुल्लकें देश के लिए फोड़ी हैं। देशवासियों ने अकाल के समय अनाज की कनि होने पर प्रति सोमवार उपवास भी रखा है।
स्वतन्त्रता संग्राम से लेकर आज तक शान्ति सत्य व अहिंसा के बल पर हर जंग हमने जीती है। हमारी शान्ति सेना ने कभी अंडमान तो कभी बांग्ला देश आदि स्थानों पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई है। अपनी जीत के साथ औरों को भी जीत दिलाई है। दूसरों की जय के साथ हम अपनी विजय हाँसिल करते आए हैं।
आज इस कोरोना के कहर में भी हमनें ताली थाली बजा, दीए जला अपना हौंसला बनाए रखा है। हमारे वैज्ञानिकों ने वेक्सीन इज़ाद की। किन्तु सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना के साथ अन्य देशों की भी हमने मदद की।
भारत एक वृहद परिवार है। वेक्सीन का डोज़ विभिन्न स्तरों पर दिया जा रहा है। सरकार के साथ सामाजिक संस्थाएँ भी जी जान से जुटी हैं। टाटा अम्बानी आदि के साथ अभिनेता जन भी एक सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं जैसे सोनू सूद आदि। हर नागरिक अपनी हैसियत अनुसार मदद का हाथ बढ़ाने में जुटा है। रिक्षावाला मरीज़ों को मुफ़्त में अस्पताल पहुंचा रहा है। लोग दवाइयाँ खाना फ़ल दूध व अन्य सामग्री ज़रूरत वालों तक पहुंचा रहे हैं। यहाँ बात सिर्फ़ जान पहचान वालों की नहीं, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना है। ऐसी निस्वार्थ भाव से सेवाएँ की जा रही हैं, साधन हमारे निश्छल निष्कपट हैं तो लक्ष की उपलब्धि क्यूँ न होगी भला ? साधना अवश्य पूरी होगी
हालाँकि यह वक़्त भी गुज़र जाएगा। फ़िर भी अपने प्रयास ज़ारी रखने हैं। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। दो कदम हमारे, हज़ार कदम भगवान के। ख़ुद को बचाकर ही परिवार बचा सकते हैं। अतः पौष्टिक भोजन फ़ल दूध के साथ प्राणायाम व्यायाम ध्यान मैं नियमित करती हूँ। किसी की कोई भी ज़रूरत हो पूर्ति करने का प्रयास करती हूँ।
मेरा बेटा रूपल पुलिस में है। उसे रोज़ ड्यूटी पर जाना ही है। किंतु उसका मोबाइल दिन भर चलता है। ख़ुद डबल मास्क लगाता है। गरम पानी साथ रखता है। औरों को भी निर्देशित करता ही रहता है, " थोड़ा भी बुखार व गला खराब हो , बिल्कुल लापरवाही मत करो। फलाँ जगह फलाँ डॉ से मिल फौरन भर्ती हो जाओ। कोई भी काम हो मुझे बताना। " तमाम फोन नं, व दवाइयों के नाम उसके पास हैं। ख़ुद जाकर दवाई लाता व पहुँचाता है। कोई भी पहचान का क्वार्नटाइन है, उनका सपरिवार खाना घर से ले जाता है। और बहु रूपा बड़े प्यार से बनाती है। खूब सारे पैकिंग मटेरियल लाकर रखे हैं। कई मरीज़ दोस्त देर रात अस्पताल से बात कर पूछते हैं, " अरे यार दादा, आप ही बताओ क्या करूँ ? आप बच्चों की खबर लेते रहना।" जैसे ही वह घर आता है, बच्चे कहते हैं, " डॉ पापा आ गए हैं। " ये बात मेरे बेटे की है किंतु और भी कई लोग हैं जो परामर्श व सांत्वना देने का सतत शुभकर्म कर रहे हैं। सभी ऐसा करें तो हमारी जीत निश्चित है।इसी तरह ज्योत से ज्योत जलाते रहना है। दूर रहकर सहयोग की श्रृंखला बनानी है।
हमारे अग्र पंक्ति के कोरोना योद्धा डॉ व उनकी टीम, पुलिस, सेना , स्वच्छता व अन्य कर्मी अपनी जान की बाजी लगा कर्तव्य स्थल पर डटे हुए हैं। इनकी मेहनत कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी। जो सबकी मदद करते हैं, ईश्वर भी उनकी सहायता करता है। सहयोग से ही सर्वोदय होगा। अतः हम यह नहीं कहे कि मुश्किलें बड़ी हैं। उन मुश्किलों से कहे कि हमारा ख़ुदा बड़ा है।
हमें यह सोचना है कि प्रकृति ने हमें गलतियों की सज़ा दी है। यदि हम उन्हें सुधार लें तो फ़ल अवश्य मिलेगा। हम प्रण करें अपने परमपिता से कि हम भूलकर भी अब भूल नहीं करेंगे। वे हमें अवश्य क्षमा करेंगे। अतः यही सोचे कि कल जो भी होगा अच्छा होगा। हम जीतेंगे ही। जैसी सकारात्मक हमारी सोच होगी , वैसी ही हमारी यह सृष्टि होगी। बस सुकर्म करते रहे। गीता का महावाक्य याद रखें,,,जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा है और जो भी होगा अच्छा होगा।
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित