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एक नन्ही परी - Minal Aggarwal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

एक नन्ही परी

  • 294
  • 7 Min Read

एक नन्ही सी
परी
आई इस धरती पर
विचरने को
कुछ लम्हों के लिए
फिर लौट गई वापिस
परीलोक में
भारी मन लिए
नाखुश थी वह
पृथ्वीलोक के बिगड़े हालात देखकर
रो रही थी
उसकी आहें दम तोड़ रही थी
सांस लेने में उसे तकलीफ हो रही थी
मौत का कहर देखकर उसकी रूह सकते में थी
चारों तरफ पसरा खौफ का सन्नाटा था
दिल में दबी चीखों का जुड़ गया हर किसी से
जैसे नाता था
खेलने आई थी
घूमने आई थी
टहलने आई थी
वह तो
दिल लगता इस जगह तो
किसी मां की कोख से जन्म लेकर
कुछ समय यहां बिताने आई थी वह तो
इतनी भयावह स्थिति की तो
उसने कल्पना भी न की थी
यहां जिन्दा रहना तो
मुश्किल प्रतीत हो रहा था
सांसें लेने के लिए
बहुत यत्न करना पड़ रहा था
किसी को छू भी नहीं सकते थे
किसी का हाथ पकड़ उससे बोल भी नहीं
सकते थे
चेहरे को भी ढककर रखना था
एक उचित दूरी बनाकर ही सबको
तकना था
इतने सख्त नियमों का पालन करने की तो
उसे आदत भी नहीं थी
वह तो एक स्वच्छंद तितली
एक नन्ही चिड़िया
एक उड़ता बादल
एक मदमस्त हवा का झोंका
एक पागल नदी के पानी की झंकार सी
पायल का घुंघरू थी
वह कहां पर्दे में कैद हो सकती थी
तोड़कर बंधन
वह तो लौट गई अपने घर
अपने स्थान
अपने परीलोक
अलविदा कह गई सबको
मन ही मन में संकल्प लेती हुई
नहीं लौटेगी कभी इस
धरती लोक पर
जब तक यहां के हालात और
लोग नहीं सुधरेंगे।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001

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