कविताअतुकांत कविता
दो दोस्त थे बड़े अच्छे
एक अमीर तो एक गरीब
एक रहता था आलीशान महल जैसे मकान में।
दूसरा रहता था झपरे से बनी झोपडी में।
जब भी दोनो एक दूसरे से मिलते तो
उधेड़बुन की स्थिति में ही रहते थे।
गरीब दोस्त खुश था
अपनी झोपडी में मस्ती से रहता था
एकदिन उसका अमीर दोस्त उसके घर आया।
और उसके छोटे से खुशी संसार को देखकर सोचने ।
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झोपड़ी
इनका हर दिन कितना प्यारा है
एक झोपड़ी में ही
साथ सभी के रहते है।।
सब एक साथ बैठकर
अपने अपने मन की
करते है,खेलना, कूदना ,
खाना-पीना सभी का एक साथ
होता है,,बिछा एक खटिया
पर चादर खूब मजे से सोते है।।
माना झोपड़ी छोटी है,
लेकिन उसमें रहने वालों के दिल
तो बड़े है,
सब एक दूसरे के दुःख में
साथ निभाते है
सच मे अपनेपन का
हमे महत्व समझाते है
अल्प इच्छाओं के बीच
जिंदगी सुकून भरी है
अल्प वेतन में भी ज़िंदगी
की गाड़ी पटरी पर चलती है
ना कोई टेक्स की चिंता
ना चोरी होने डर सताता है
बस सुकून की दो रोटी मिले
इसमें ही खुश रहते है।
साथ में रहने पर बड़े सुकून
से जीते है।
सुख सुविधा से भरपूर नही है
लेकिन अपनत्व से बनी है
सच मे ये दिन बहुत ही सच्चे और सुकून भरे है।।
माना देखने वालों को
झोपड़ी बेरंग नजर आती है लेकिन अंदर से हमारी दुनिया रंगीन नजर आती है प्यार से बनती है हमारी दुनिया इसकी नींव मजबूत नजर आती है।।
महल
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छोड़ो ना महलों की बाते
हम महल वाले बड़े इतराते है
कितना है हम में घमंड ये
हर वक्त गरीब को
अहसास करवाते है।
सुख सुविधाओं से भरपूर है
हमारा आलीशान महल
बस बार बार ये कहकर ही
स्वंय को बड़ा दिखाते है और
ओरो को
गरीबी का अहसास करवाते है।
लेकिन अक्सर हम अकेले ही
नजर आते है,,
किसी को परवाह नही यहाँ
कौन किस दुःख से गुजर रहा
बस अपनी मस्ती में ही नजर
आते है,,
आलीशान बंगले
वाले सदा
परेशान नजर आते है।
सायद सुकून नही ज़िंदगी मे
पैसो की भूख के
आगे रिश्ते जलते
नजर आते है।
बस हर वक्त तृष्णा व बेईमानी से
नींद सुकून की कहा आती है
हर पल चिंता ही सताती है।
ऐसी ज़िंदगी है महलों की।
अपनेपन का अहसास नही है
साथ होकर भी एक
दूसरे के साथ नही है।
सुख सुविधाओं से आराम
मिलता है सुकून नही है।
महलों की ये दुनिया दूर से रंगीन जरूर नजर आती है लेकिन अंदर से बेरंग है इनकी दुनिया ।महल की
खोखली नींव नजर आती हैं।
ममता गुप्ता
मौलिक व स्वरचित