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निर्वाण - Minal Aggarwal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

निर्वाण

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तुम कितने सुंदर
फूल हो
एक नील परी से
मखमल के हरे पत्तों में
लिपटे
एक नीले आकाश की झील के
कंवल से
यह तुम्हारे नाक की नथ और
कान की बाली
जब हवा संग लहराती है तो
उग आती है सूरज के होठों पर
लाली
तुम नीलकंठ से
नीले रंग वाले
आसमान का नीला रंग चुराते हो
उसे मलमलकर अपने जिस्म पर
नील से कुछ कुछ काली धारियों के जाल से भी
बंध जाते हो
तुम क्या अब यह चाहते हो
कोई आये पास तुम्हारे और
तुम टूट कर गिर पड़ो उसके
चरणों में
यह विनती करते हुए कि
कोई तुम्हें उठाये और
मंदिर में ले जाये
वहां जाकर गंगाजल से नहलाकर
तुम्हें प्रभु के चरणों में चढ़ाये
तुम्हारे जीवन की यह तैय्यारी
अदभुत थी
तुम्हें जीवन के आरम्भ से ही
भली भांति पता था
तुम्हारे जीने का मकसद
प्रभु स्मरण
प्रभु वंदन
प्रभु समर्पण
तुम्हारा जीवन प्रभु की सेवा में ही
सदैव रहा अर्पित
तुम हकदार हो कि
तुम्हारे जीवन के अंतिम क्षणों में
तुम्हें प्रभु के चरणों में स्थान मिले
तुम्हारे जीवन को निर्वाण मिले।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001

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