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उदासियां - सु मन (Sahitya Arpan)

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उदासियां

  • 155
  • 12 Min Read

उदासियों की परत जब जम जाए तो उसे उतारना कितना मुश्किलों भरा होता हैं। यह एक ऐसी बिमारी हैं जो लग जाए तो भीतर तक इंसान को तहस नहस कर देती हैं। यह अंदर कुछ पनपने भी नहीं देती ना प्रेम,,, ना दया,,, ना भावनाएं ,,सब खत्म कर देती हैं।
बंजर जमीन बना देती हैं दिल की ... लाख कोशिशों के बावजूद हम नाकामयाब होते हैं।

धीरे धीरे यह सब रिश्तों को भी ख़त्म कर देती हैं, दोस्ती.. प्यार... परिवार... सब हार जाते हैं इसकी जिद्द के आगे।

पता हैं जब मैं तुम्हारी तस्वीरें देखती हूँ तो कैसा लगता हैं.......ऐसा लगता हैं कि जैसे कई सारे गम तुमने अपने सीने में दफन कर दिए हैं...तुम्हारा मन एक कब्रिस्तान बन गया हैं उन जज्बातों का जिनका कत्ल तुमने कर दिया... इक आँसू तक उन पर बहाया नहीं गया। तुम्हारी आँखे जैसे तरस सी गई हो रोने के लिए पर .......तुम्हें वो कंधा मिला ही नहीं.... जिस पर सिर रखकर तुम इतमीनान से रो सको। कम कर सको अपने दिल का बोझ और जो परत जमा हुई हैं वो हटा सको। पर नहीं..... ना शायद मैं गलत होऊ।

मुझे इतना नहीं सोचना चाहिए तुम्हारे बारें में... मैं अपने ख्याल के दायरों को बांध नहीं सकती। वे अनंत तक जा ठहरते हैं हर बार।

मैं जानती हूँ तुम बेहद परेशान हो.... यह सब तुमने कभी बताया नहीं पर तुम्हारे बात करने के अंदाज से समझ आ जाता हैं। अचानक कुछ कहते कहते चुप हो जाना... बिना वजह यूँ खुद को इल्जाम़ देना। और उलझी सी बातें कर खुद को परेशान कर देना। और वो खीजना कभी मुझ पर तो कभी खुद पर....

मैंने हर मुमकिन कोशिश कि की मैं इन सबसे तुम्हें इन सब से बाहर ले आऊ पर नहीं। मैं गलत थी और हमेशा गलत ही रहूंगी क्योंकि तुम सही हैं वो होना ही नहीं चाहते।

मैं हार रही हूँ और यह सब मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा हैं कि..... तुम इन सबसे बाहर नहीं आए तो क्या होगा तुम्हारा ?????

उफ्फफ....!

अब तुम्हारी ये हालत देखी नहीं जाती मुझसे.... हो सके तो माफ करना मुझे। शायद कही कोई कमी रह गई...। मैं खुद अवसाद में जा रही हूँ तुम्हारी यह हालत देखकर। बहुत बुरा लगता हैं पर मैं क्या करु जब तुमने उम्मीदों के सारे रास्ते.... दरवाजे... खिड़कियां... झरोखें.... रोशनदान... सब बंद कर दिए हैं।

अब भी देर नहीं हुई.... अभी भी वक्त हैं संभल जाओ। वरना सिर्फ और सिर्फ मलाल रहेगा ताउम्र।

इतना सब सामने कह नहीं सकती थी तो लिखना पड़ा। लिखा हुआ पढ़कर ही महसूस कर लो कि हाँ मुझे फिकर हैं तुम्हारी.... फिकर हैं उस मुस्कुराहट की जो गुम हो गई हैं.... फिकर हैं उन जज्बातों की जो तुमने दफन कर दिए हैं। और सबसे ज्यादा फिकर इस बात कि हैं की अगर तुमने खुद को खो दिया तो मैं कहाँ से खोज कर लाऊगी तुम्हें।

कुछ तो ख्याल करलो अपना... अपने लिए ना सही तो मेरे लिए ही सही...।

सु मन

#एकइडियटकेडायरीनोट्स

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत सही कहा आपने

सु मन3 years ago

शुक्रिया आपका

समीक्षा
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