कविताअतुकांत कविता
#शीर्षक
मां ऐसी ही होती है ...
माँ तुम ऐंटीबायोटिक दवा की गोलियों सी।
मेरे हर दुख-दर्द में तुरंत असर करती हुयी ।
माँ वे भी क्या दिन थे ?
जब तुम्हारी ममता की छांव में
मुझे अपने होने का अहसास पहली बार हुआ था ।
क्यूँ तुम इतना याद आती हो माँ?
दिख जाती हो अक्सर सपने में वैसी ही गोल-मटोल।
जैसी साठ बरस पहले थी तुम
ठीक वैसी ही हूँ अब मैं माँ
आंखों में नहीं है झुर्रियाँ ना ही
गालों में काली गहराई ।
माँ तुम आंसू की बूंद बन आंखों के कोर में अटकी हुयी ।
इक ऐसी याद सी ,
जो अपने साथ कई यादों को झिंझोड़ती ,
सिमटाती अपने-आप में।
माँ तुम बस ऐसी ही हो ...
सीमा वर्मा /स्वरचित