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बिना स्वार्थ के सारथी बनो - Mamta Gupta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

बिना स्वार्थ के सारथी बनो

  • 427
  • 7 Min Read

मैं एक साधारण सा इंसान हु ,
कुछ लोगो के पैरों तले दबा ...
जो मेरी मेहनत और लगन से ,
मेरे काम से , आज ऊंचाइयों तक है पहुँचा ...

निर्बल , असहाय नही हु मैं ,
बस रोटी की भूख रखता हूँ ...
किसी भी रहम का मोहताज नही ,
बस अपनी इज़्ज़त की आस रखता हूँ ...

खुश होता हूँ अपने आप से ,
कभी जो ख्वाहिशो की बारिश सी होती है ...
निःशब्द हो जाता हूं जब भी कोई ,
जब भी कभी मेरे काम की तारीफ होती है ...

जिम्मेदारियां बड़ी लगती है खुद की ,
समय बहोत कम लगता है ...
लड़के की पढ़ाई और लड़की के शादी को ले कर ,
अक्सर दिल घबरा सा जाता है ...

मैं निर्धन हूँ पर आत्मनिर्भर हूँ,
एक ही पैगाम दुनिया तक पहुचाता हूँ ...
मिले जो कोई मुश्किल में ,
अपना हाथ उसका साथ देने को बढ़ाता हूँ...

किसी के दुख को हसी का न कारण बनाते हुए ,
अपनी जी जान उसकी मदद में लगा देता हूँ ...
मैं भी इसी कलयुग का एक इंसान हूँ ,
अपनो के साथ निर्बलों का साथ भी निभाता हूँ...

जितना हो सके कर्म अच्छे किया करो,
यही बात सबको भी समझाता हूँ ...
अपनी राह से भटक जाने वालों को ,
एक नया पथ दिखलाता हूँ...

इस कलयुगी जीवन मे ,
जहा कोई किसी का नही ...
बिना मतलब के हाथ बढ़ाओ ,
बस यही सबका सिखलाता हूँ ...

हर उस मुश्किल में फसे हुए इंसान को,
एहसास दिलाओ अपने पन का ...
खोज लेंगे मिल के नई दिशा ,
एक बार जो हाथ बढ़ाओ अपनेपन का ...

बिना स्वार्थ के सारथी बनकर ,
मानवता का धर्म निभाता हूँ ...
खुश हूँ जैसा भी हूँ अपनी दुनिया मे ,
सबको खुशी बाटना चाहता हूँ ...

अपने से छोटे बड़ों का आदर करो ,
मित्र सा करो व्यवहार यही एक बात बतलाता हूँ ...
एहसान नही हाथ मिलाता सबसे ,
यही एक काम शुद्ध अंतकरण से निभाता हूँ ...

ममता गुप्ता

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