कविताअतुकांत कविता
माॅं हुई जो मैं तेरी कन्या क्या कर दोगी तुम मेरी हत्या,
कैसे तुम रह पाओगी कर के तुम मेरी हत्या।
पैदा होकर मैं कभी ना करूंगी तुमको अपमानित,
बन कर तुम मेरी जननी खुशियां पाओगी अनगिनत।
घर की लक्ष्मी बन कर मैं घर के लिए लक्ष्मी लाऊंगी,
माॅं तुम भी तो हो एक कन्या मत करो ना मेरी हत्या।
बाबा को तुम समझाओ ना मत करो ना भ्रुणहत्या,
भ्रुणहत्या है एक अभिशाप मत करो ना तुम यह पाप।