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सफर - सु मन (Sahitya Arpan)

लेखअन्य

सफर

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उसे एक सफर पर जाना था जो कहाँ खत्म होगा उसे खुद पता नहीं था। पर चलना जरुरी था बिना बिना थके, बिना रूके .........


वह निकला बरसों तक रहा सफर में। बहुत कुछ देखा उसने जाना,समझा और तस्वीरें में कैद किया उन लम्हो को जिन्हें वह अपने जीवन के सबसे अनमोल पल समझता था.........
अनजान लोगों से मिला, बातें की, महफिलें लगाई, जाम छलकाए। दूर किसी जंगल में अलाव के पास बैठकर रात से सुबह की।
पर सुकुं............ कही नहीं मिला।

हमेशा एक अजीब सा एहसास उसके मन को घेरे
रहता। उदासियाँ जैसे उसकी जिंदगी का हिस्सा बन गई थी।




और अब घर वापसी हो रही थी......


कुछ चीजें हमें वक्त पर छोड़ देनी चाहिए वही सब ठीक करता हैं, सही वक्त आने पर।

जिंदगी चल नहीं रही दौड़ रही हैं और कुछेक हैं जो आराम से चलकर यादें बनाना चाहते हैं, लम्हों को जीना चाहते हैं। यही संतुलन नहीं बना पाता हर कोई।

लम्हें तेजी से हाथों से फिसल रहे थे। कभी कभी मन करता हैं कि खूबसुरत यादों को सहज कर रखने के लिए एक डिब्बा लूँ और सबको उसमें भर दूँ।

जब भी उसको खोले तो ............एक नया एहसास मिले। वह अपनी खुश्बु महका दे और रंग भर दे उन में वो सब जो बेरंग हैं, जिसमें खुशबू नहीं हैं।


इस वक्त में उसने वो सब देखा......
जिआ और महसूस किया जो पीछे रह गया था कही। ये दुनिया ही अलग थी जो वो कभी देख ही नहीं पाया.........उसने खुले आसमान में पतंगें उड़ाई अपने मन की जो ठहरना नहीं जानती.........

उसने डूबते सूरज को देखा.........हल्की लालिमा लिए दुबक कर बैठा था आँगन के किसी कोने में।
वैसे ही जैसे कोई शरारती बच्चा शैतानी कर छुप जाता हैं डांट के डर से।

उसने पंछियों का संगीत सुना ठीक वैसे ही जैसा बचपन में सुनते थे।

दिल कहता कि हम बच्चे ही रहते तो बेहतर था।
उसने अभी भी खुद में वो शैतान और हुगदंग मचाए रखने वाला बच्चा बचा रखा हैं।मन के किसी कोने में.........
जब भी वो बाहर आता हैं खुब उधम मचाता हैं, शरारतें करता हैं।

वह मासुम सा बच्चा गलियों में शोर मचा कर दौड़ लगाता हैं ........ खिलखिलाकर बिना वजह हंसता हैं ........ मन का कुछ ना मिले तो जमीन पर बैठकर पैर पटकता हैं ... जिद्द करता हैं ......
और कभी कभी रो देता हैं जरा सी डांट पर ... थोड़ा सा प्यार जताने पर वह भुल जाता हैं कि किसी ने डांटा भी था ....

और दिन भर की थकान उस वक्त गायब हो जाती थी जब माँ बड़े प्यार से गालों को चुमती थी।

कभी कभी वापस लौट कर आना सुखद एहसास होता हैं। फिर चाहे वह किसी अपने का वापस आना हो .................. या फिर उस मासुम बच्चे का लौटकर आना जिसे हम कही खो चुके हैं। और एक दिन वह हमें अचानक से मिल जाता हैं ............अपनी बडी़ बडी़ आँखों में अनेको सवाल लिए और .........चेहरे पर वही निश्छल मुस्कान लिए जो बहुत कम ही बची हैं आज के इस दौर में


सुमन

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