कहानीसामाजिकप्रेरणादायकअन्य
#विधा: डायरी लेखन
प्रिय डायरी
अब तुम तो मुझे अच्छी तरह जानती हो। तुमसे मैं कुछ छुपाती नहीं। तुमसे पिताजी की बातें भी मैंने बांटी थीं। मैं बहुत भाग्यशाली था।मेरा बहुत अच्छा समय अपने खेत, खलिहान और बाग में बीता। पिताजी कुदरत का वरदान नीम, आम,पीपल के पेड़ मुझे विरासत में दे गये।
यह जो खुली हवा में ताजगी से भरीे श्वास ले रहा हूं,यह पिताजी की बदौलत है।
बड़े भइया को पिताजी ने पढ़ाया- लिखाया मगर उन्हें गांव कहां रास आया! उन्होंने अपने निजी स्वार्थ के लिए, पिताजी को धोखे में रखकर, झूठ बोलकर उनसे कागजात पर दस्तखत करवा लिए। उनके लगाए बाग बेच दिए।अपने हिस्से की ज़मीन बेच दी और वह भी किसको ? ईंटों का भट्टा लगाने वाले को। हरे- भरे खेत उजड़ गए। लोग उन्हें समझाते, सच की जीत होगी,झूठ की सजा उपर वाला देगा। मगर यह देखने के लिए पिताजी कहां जिंदा रहे!।आज भइया के किए की सज़ा गांव भुगत रहा है।चिमनियों से निकल रहे धुएं से आसपास रहने वालों का दम घुटता है।
कल भाभी का फोन आया कह रही थी, भैया की तबीयत बहुत खराब है उन्हें साँस लेने के लिए कृत्रिम प्राणवायु
की जरूरत है।कल से वह शहर के कई अस्पतालों के चक्कर लगा चुकी हैं, मगर प्राणवायु कहीं उपलब्ध नहीं है।
भइया, ये क्या हो गया जिस धरती माता की हरी-हरी गोद उजाड़ने में तुमने तनिक भी संकोच न किया,आज वह सूनी गोद प्राणवायु कहां से लाए?
मैं उन्हें यहां ले आऊंगा, यहां प्राणवायु की अभी कोई कमी नहीं ,शायद धरती मां उनकी भूल माफ़ कर दें!
गीता परिहार
अयोध्या