कविताअतुकांत कविता
*धड़कन*
*धड़कनों का यूँ धड़कना
कई एहसास करा देता है
प्रत्यक्ष विश्वशनीय पैमाना
है जन्म से मृत्यु तक का
*इनका सामान्य स्पंदन,,,
जीवित होने का प्रमाण है
धड़कनें लयबद्ध हो तो
बजती रहती जीवनवीणा
*मंथरता अथवा तीव्रता
दर्शाती हैं दरकती दीवारें,
इस रूप बदलती देह की
और जब थम जाती हैं ये
आत्माएँ पहुँचे परमधाम
*नवप्राण लेते हैं आकार
माँ के गर्भ में होले होले
नवमेहमान देता आभास
धड़क धड़क कर माँ को
*माँ के आगोश में जाकर
चुप हो जाता रोता बच्चा
उन धड़कनों का आदी है
अंकुरण से प्रस्फुटन तक
*खुशी व गम दोनों ही में
धड़कनें लगती हैं दौड़ने
ऐसे में लाज़मी है अंकुश
वरना ये थमती जाती हैं
*दिल कुछ कहना चाहे
ये स्वतः धड़कने लगती
अटूट प्रेम का प्रतीक बन
मिला देती हैं दो दिलों को
*जब तेजी से धड़कती हैं
आशंकाओं से भर देती हैं
क्यूँ न शुभ शुभ ही सोचे
कहीं बिछड़े का संदेश हो
*क्यूँ न देहत्याग से पहले
करदें औरों के नाम इन्हें
धड़कती रहेंगी दिलों में ये
चाहे हम रहे या ना रहे
सरला मेहता