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घी का तड़का - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

घी का तड़का

  • 202
  • 4 Min Read

शीर्षक:-*घी का तड़का*

जयवर्धन को मंच पर सम्मानपत्र प्रदान किया जा रहा है। आय ए एस परिक्षा में सर्वोच्च स्थान पाया है। वह यह सम्मान अपनी माँ के हाथों लेना चाहता है। आज उन्हीं की बदौलत वह यहाँ तक पहुँच पाया है।
कुंती देवी पास बैठी प्रेरणा की पीठ थपथपा कर मंच पर जा कहती है, " मेरे बेटे की इस उपलब्धि का सारा श्रेय मुझे नहीं किसी और को जाता है। उस शख़्स ने मेरा कहा माना। पूरे दो साल तक अपने दिल पर पत्थर रख एक शिला सी अडिग रही। अपना एक प्रोजेक्ट पूर्ण करने यू एस चली गई। और दे गई चुनौती अपने दोस्त को। वह ब्याह करेगी तो किसी गजेटेड ऑफिसर से । "
यश भ्रमित सा सामने बैठी प्रेरणा को कनखियों से देखता हुआ बोला," तो
यह खिचड़ी पक रही थी होने वाली सास बहु के बीच। "
प्रेरणा मुस्कुराती मंच पर जा बोलती है, " माँ ! हम दोनों की पकाई खिचड़ी में जय ने सचमुच असली घी का ज़ोरदार तड़का लगा दिया है। "
सरला

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

माँ बाप हमेशा बच्चों का अच्छा ही सोचते हैं। एक दोस्त तो कभी एक शुभचिंतक की भूमिका निभाते हैं।

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