कविताअतुकांत कविता
इसी का नाम है जिंदगी
उषाकाल की लालिमा
धीरे धीरे किरणों में बिखर
समा लेती है आगोश में
पूरे के पूरे ब्रह्मांड को
आल्हादित है हर कण
इसी का नाम जिंदगी है,,,,,,
धरती पर बिखरे बीज
झांकते कोपलों के रूप में
यौवन की दहलीज़ पर वृक्ष
भर जाते हैं रंगीन फूलों से
बिखर जाते हैं बीज मोती से
इसी का नाम जिंदगी है,,,,,,
पशुओं के जोड़े प्रेम मगन
विचरते हैं स्वछंद
कुलांचे भर तकरार करते
उपहार गोने छोने का दे
उपकृत करते धराकी गोद को
इसी का नाम जिंदगी है,,,,,,
अबोध से शाकाहारी पशु वृन्द
आश्रित हैं हरे भरे पौधों पर
वनराज से आतंकी प्राणी
मनाते भोज बिन निमंत्रण के
अद्भुत चक्र है सच नियति का
इसी का नाम जिंदगी है,,,,,,,
सरला मेहता