लेखआलेख
*आलेख*
*जल ही जीवन है*
सही है, जल है तो कल है। सृष्टि के सृजनकर्ता भगवान में ही पंचतत्व समाहित हैं। भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि और न से नीर।
इनमें से नीर सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। धरा को नीला ग्रह, जल की 71% मात्रा के कारण ही कहते हैं। मानव शरीर में जल की मात्रा अधिक है। फ़िर प्राणी मात्र भी बिन पानी के पानी पानी हो जाते हैं। अतः भोज्य पदार्थों से अधिक जल की ज़रूरत है। जी, सच है बिन पानी सब सून,,, पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून।
वंदेमातरम को सुजलाम कह गए हैं आ0 बंकिम जी। जी हाँ, जीवनदात्री नदियों का जाल बिछा है भारत में। किन्तु अंधाधुंध व नासमझीपूर्ण दोहन ने आज राम की गंगा के साथ सभी नदियाँ मैली हो गई हैं। सूखकर काँटा रह गई हैं। पूजा सामग्री अस्थि व मूर्ति और न जाने कितने विसर्जनों ने
मातृवत नदियों का बेड़ा ग़र्क़ कर दिया है। कल कारखनों का अवशिष्ट व तमाम कचरे ने जल संसाधनों को कूड़ादान बना कर रख दिया है। फलस्वरूप जल का अभाव दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। वृक्षों की कटाई से वर्षा में कमी आ गई है। और नलकूपों ने धरती की छाती को बेंध कर रख दिया हैं। औद्योगिकरण व पेड़ों की कटाई से तापमान बढ़ रहा है। शुद्ध जल के भंडार हिमखंड पिघल रहे हैं। अतः जल का अभाव परिलक्षित हो रहा है।
अतः जल के संरक्षण व संवर्धन हेतु प्रयास नहीं किए गए तो,,,,
*आचमन से प्यास
बुझानी होगी
बूंद बूंद भी पानी की
बचानी होगी*
*बूंद बूंद से घट भरे
व्यर्थ इसे न बहाए*
*नदी झरने पोखर ताल
प्रदूषण से हैं ये बेहाल
प्रकृति के मूक चितेरे
करें हम सार सम्भाल*
जी हाँ, जिस जल से हमारा जीवन है, उसको सहेजना सम्भालना होगा। सरकार के साथ जनभागीदारी भी ज़रूरी है। सरकारी प्रयास हो रहे हैं। जल संसाधनों की सफ़ाई सुरक्षा की जा रही हैं।
इनके सौन्दर्यीकरण की दिशा में इन्हें पर्यटन स्थल का रूप दिया जा रहा है। नदियों को जोड़ा जा रहा है। उफ़नती बाड़ का पानी सूखे इलाकों को दिया जा रहा है। सभी नदियों को साबरमती बनाना ही होगा। वरना बस सपने ही देखते रहें,,,,,
कश्ती का खामोश सफ़र
हम तुम पतवारें थाम के
कह भी दें जो कहना है
आइए शपथ लें,,,,
सफ़ाई-अभियान चलाए
बाल्टी मग उपयोग करें
टोटियाँ नल की भी सुधारें
मैले जल से सब्ज़ी उगाए
अमृत की बूंदें हम बचाए
सरला मेहता