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*दूसरा स्वयम्भू*
शिव स्वयम्भू हैं,,,स्वयं से उद्भवित।डॉ भीमराव अंबेडकर की जीवनी भी यही कहती है। एक स्वप्नदृष्टा जैसे बिना विराम लिए मंजिलें हाँसिल करता जाता है,,, एक राह का शिलाखंड थपेड़े खाते सहते शिव या शालिगराम का रूप ले लेता है। वैसे ही एक अदना सा नीचे तबके से आया इंसान राष्ट्रनिर्माता बन जाता है।
14 अप्रेल 1891 को महू म प्र में सेना की मुलाजिमी से सेवानिवृत पिता की चौदहवीं संतान बने। और 6 दिसम्बर 1956 को संसार से कूच कर गए। इस छोटे से जीवनकाल में कई रंग दिखा सब कुछ कर गए।
बचपन में कई जहालते झेलते आगे बढ़ते रहे। ज्ञान प्राप्ति का जुनून व जज़्बा नहीं छोड़ा। विद्यालयों में एक दलित छात्र को कक्षा के बाहर अपने बोरे पर बैठना पड़ता था। प्यास लगने पर चपरासी ऊपर से अंजुरी में पानी डाल देता। चपरासी नदारद तो दिनभर प्यासे रहो। किन्तु हिम्मत नहीं हारी। गरीब पिता कैसे भी बेटे के लिए किताबों का जुगाड़ करते। एक बार आधा आना लिए घर से भागे किन्तु आत्मग्लानि ने घर आने को मज़बूर कर दिया। उनके जीवन को संवारने में पिता के अलावा दादा केलुस्कर व पारसी मित्र नवल जी का बड़ा सहयोग रहा। जैसे तैसे सबके प्रयासों से वे आगे बढ़ते रहे। छात्रवृत्तियां मिलती रही और उनकी डिग्रियों की फ़ेहरिस्त लंबी होती रही।
बैरिस्टर नेहरू जी के इस समकालीन ने कला विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों में महारत हाँसिल की।
लंदन से डी एस सी, एम एस सी, पी एच डी व अर्थशास्त्र , न्यूयार्क से एम ए पी एच डी और ग्रेज से बैरिस्टरी। इन्हें दलित होने के कारण संस्कृत भाषा के स्थान पर पर्शियन पढ़ना पड़ा।ये सारी डिग्रियाँ प्राप्त करने के लिए आला दर्ज़े का दिमाग़ डॉ साहब के पास ही था।
इनके प्रेरणा स्तम्भ इनके गुरु रहे हैं। सकपाल सरनेम से छुटकारा इनके बाह्मण गुरु अंबेडकर ने दिलाया, माँ भीमा के साथ पिता रामजी का नाम जोड़कर। और वे कहाने लगे बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर।
आपकी दो शादियां हुई। पहली पत्नी के गुज़र जाने पर डॉ सविता इनकी अर्धांगिनी बनी।
कानून के प्रकाण्ड पंडित थे। अतः देश के नए संविधान के निर्माण में डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ इनका योगदान नहीं भुलाया जा सकता। वे जीते जागते दस्तावेज़ संविधान के शिल्पकार व सृजनकर्ता के रूप में जाने जाते हैं।
बचपन में जो कुछ भोगा, वे नहीं चाहते थे कि आनेवाली पीढ़ियां भोगे। अतः दलित पिछड़े व निचले तबके के लिए आरक्षण का प्रावधान रखा। उन्होंने यह नहीं कहा था कि पीढ़ी दर पीढ़ी इसका लाभ मिले।
बाद में दलित शब्द के स्थान पर हरिजन शब्द की सिफारिश बापू ने भी की।
अतः बाबा साहेब राष्ट्रनिर्माता, गरीबों के मसीहा, ज्ञानपुंज, के पहरेदार आदि कई नामों से प्रख्यात हैं।
*सूरज स्वयं ही उदय हो जाता है
नहीं ताकता राह किसी आदेश की
जगमगाकर कई तारों को आकाश में
अपना कर्तव्य निभाता ही जाता है
सरला मेहता