कवितालयबद्ध कविता
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा…
कैसे इ जाने कब होइ गवा,
ऊ आयी,
हमरा नजर खोई गवा,
दिल से ससुरा गज़ब होइ गवा,
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा-२
राते सपने में उहि होइके आवै,
भोरे-भोरे ऊ हमका जगावै,
घरवा में कह सब गज़ब होइ गवा,
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा-२
पढ़ै-लिखै म उ बहुतै होशियार,
घुमै बरे उ अयलि बाजार,
दिलवा से दिलवा के मेल होइ गवा
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा-२
जैसे उ पुछनि "कैसे हो राम",
दिलवा से निकला "जिया मोर जान",
न जाने कब अंखियन से फैसला होइ गवा,
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा-२
पहले हम रहनी थोड़े परेशान,
खावत-पियत म बड़कै शयान,
अब हमारी परेशानी संग शरम छोड़ गवा
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा -२
गदेला-वदेला बहुत चिल्लाय,
बीवी के आगे सब व्यर्थ होइ जाय,
बड़े के आँखन मा इ चढ़ स गवा,
अब दिलवा हमार बच्चा होइ गवा,
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा -२
चिट्ठी लड़ाई सगरो चलल,
माँगल मिठाई सगरो बँटल,
मैटर इ हमर पर्सनल होइ गवा,
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा -२
-गौरव शुक्ला"अतुल"