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धुँधला होता रंग - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

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धुँधला होता रंग

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*धुँधला होता रंग*

अभी अभी पद्मा राजेंद्र की दिल की कलम से लिखा आलेख पढ़ा,,,
*क्या आप भी ?* और सच इस पान प्रकरण ने कई यादें ताज़ा कर दी। यूँ देखा जाए यह शनै शनै विलुप्त प्रजाति की श्रेणी में भी आ सकता है। मुखवास के नए साधनों की कमी नहीं है। कई तरह के पान मसालों से बाज़ार पटा पड़ा है।
एक ज़माने में प्रत्येक घर में एक पीतल या चाँदी का पाँच सात खानों वाला अदद पानदान हुआ करता था। लौंग इलायची सौंफ सुपारी पिपरमिंट जायत्री गुलकन्द आदि भरे रहते थे। कत्था व चूनादानी अलग से होती थी। और गीले कपड़े में लिपटे पान बेड़ामाची (पंडेरी) पर मटके के साइड में रखे रहते। भोजनोपरान्त सबको प्यार से पान खिलाया जाता था। इस कार्य का दायित्व घर के बुजुर्ग निभाया करते थे।
हाँ, चाय का रिवाज़ नहीं होने से मेहमानों का स्वागत भी पान से होता, पान बहार से नहीं।
पान हमारी परंपरा बन छा गया है। धार्मिक क्रियाओं में पान की प्रमुखता रहती है। प्रथमपूज्य गणेश को इसी पर विराजित कर पूजन प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। पूजा व शुद्धि हेतु पात्र से जल, पान से छिड़का जाता है।
पान बीड़ा भोग में रखा जाता है, विशेषकर देवी जी को। जी हाँ, कई रस्मों से जुड़ा है यह।
विवाह में दूल्हे के कुंवर कलेवे में पान बीड़े की अनुपस्थिति बखेड़ा कर देती है। दुल्हन के कान में सीख देने वाली सुहागिनों को पान बीड़ा दिया जाता है। पान बिन सुहागरात भी अधूरी है।
भगोरिया में तो यह दो दिलों को मिलाता है। हाँ, प्रणय निवेदन का साधन भी है।
सुस्वास्थ्य के लिए यह रामबाण औषधि है। पाचन क्रिया नियंत्रित हो मुँह का स्वाद मधुर हो जाता है। चूना कैल्शियम का स्रोत है। सुपारी को छोड़ सभी घटक अपनी विशेषता लिए हैं। नज़ला खाँसी में लौंग जायत्री केसर का पान फ़ायदा करता है। कभी प्रसूताओं को भी सुआ अजमाइन केसर जायत्री गुलकन्द आदि वाला पान दिया जाता था। श्राद्धभोज के पश्चात दक्षिणा के साथ आज भी पान बीड़े दिए जाते हैं।
धीरे धीरे पान को भी प्रदूषित किया जाने लगा। व्यसन परस्ती ने इसे तम्बाखू ड्रग्स आदि का का साधन बना दिया। अभिभावक अपने बच्चों को कहते हैं, "पढ़ लो वरना सब्ज़ी का ठेला दिला दूँगा या पान की दुकान पर बैठा दूँगा।"
पान दूकान को हेय दृष्टि से देखने वाले नहीं जानते कि यह वारे न्यारे कर सकती है। कह नहीं सकते कि वक़्त की मार झेलते यह सीधा सरल सा व्यवसाय विदेशों में झंडे गाड़ने लगे। भला हो रामदेव गुरु का कि योगा के पक्ष में आए। ऐसे ही पान के पक्षधारी की भी सख़्त ज़रूरत है। इससे अच्छा स्टार्टअप धंधा हो ही नहीं सकता है। कृपया सरकार ध्यान दे।
यह एक ठंडी हवा का झोंका है कि घर घर में पान की बेलें पनप रही हैं। करोड़ों की शादियों में एक अदद पान स्टॉल के दर्शन होने लगे हैं, जो निरन्तर अंत तक चलता है।
मुझे भी पान बहुत पसंद है। जब भी घर में मंगाया जाता, मैं दो तीन पान फ्रिज़ में रख पूरे सप्ताह चलाती हूँ। सोच रही हूँ अपने विवाह उपहारों में मिला पानदान अब निकाल ही लूँ।

सरला मेहता

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