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गज़ल - Pakhi Jain (Sahitya Arpan)

कवितागजल

गज़ल

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बात तुमको ही बताना है ।
राज हमसे ही छिपाना है।
आ गये थे रात बातों में ,
गीत सुन के मुस्कुराना है।
रोज आकर क्यूँ मनाते हो ,
मुख घुमाकर यूँ सताना है।
चाँदनी भी तड़प जाती है ।
रोशनी से घर सजाना है।
नयन में ही क्यूँ उलझते हो
क्या बनाया वो ठिकाना है।
आपसे ही यह कहानी है ,
सुन रहा जिसे जमाना है।
लुट रही पग पग जवानी है ,
हर डगर पे यह बताना है।
मनोरमा जैन पाखी
स्वरचित ,मौलिक

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत सुंदर रचना है आपकी। भावों की प्रधानता है बेहतरीन रचना।

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

मात्रा भार से एक मुकम्मल गजल तैयार होती है। क्योंकि इसमें मात्राभार की कमी है तो इसे कविता कहना उचित रहेगा।

प्रपोजल
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