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गाँठें हैं बन्धन प्यार के - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

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गाँठें हैं बन्धन प्यार के

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*गाँठें हैं बंधन प्यार के*

रहीम जी ने कहा है,,, टूटे से फ़िर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ी जाए। हक़ीक़त यही है कि टूटे को जोड़ने पर गाँठें रह जाती हैं। भारत में इन गाँठों ने कई रंग बिखेर अपने नए नए रूप दर्शाए हैं।
जीवन के कई पवित्र बंधन इन गाँठों ने ही रचे हैं। जन्म के पश्चात ही बच्चे को देवी माँ के नाम की नौ गाँठें लगी मौली गले में डाल दी जाती है। इसे बदलते रहते हैं ताकि मैली व खंडित ना हो। बाद में चाँदी की देवीमाता का पेंडल मोहरत से पहनाकर रख देते हैं। फिर ब्याह के बाद बच्चे की दुल्हन को, फ़िर उसके बच्चों को,,,यह प्रक्रिया जीवनपर्यन्त चलती रहती है।
ब्याह को गठबन्धन भी कहते हैं क्योंकि दो जीवन एक गाँठ द्वारा सदा के लिए बंध जाते हैं। ब्याह व गृहप्रवेश के बाद एक मजेदार रस्म होती है, दूल्हा दुल्हन एक दूसरे के हाथ में बंधे कंकण खोलते हैं। शर्त यह रहती कि दुल्हेराजा एक हाथ से खोलेंगे। दुल्हनियाँ दोनों हाथों का उपयोग कर सकती है। यानी शुरू से ही सारे कठिन बाहरी कार्य बेचारे मर्द की झोली में आजाते हैं। हाँ घर की लक्ष्मी का कार्य सहज अवश्य है किंतु दोनों हाथों से करते भी पूरे नहीं होते। आज तो सचमुच घर व बाहर दोनों के दायित्वों का भार उसके कांधों पर है।
रक्षाबंधन, बहन भाई के पावन स्नेह का उत्सव है। ये रक्षासूत्र की गाँठें याद
दिलाती हैं एक दूसरे के प्रति कर्तव्य का। इस दिन घर की चौखट(घरसरी) पर राखी बाँध पारिवारिक एकसूत्रता को मज़बूत किया जाता है। इसी दिन पुरुष सदस्य जनेऊ की परिसीमा में रहने की एक तरह से शपथ लेते हैं।
इस पारिवारिकता से परे कुछ धार्मिक प्रसंग हैं। किसी भी पूजा के श्रीगणेश में पंडित जी तिलक लगाकर हाथ में मौली बाँधते हैं। पूजा में शामिल जल कलशों पर नाड़ा बाँधते हैं। किसी भी मंदिर दर्शन को जाओ, पहले पावन नाड़ा बाँधा जाता है। हाँ आजकल यह पैसे कमाने का साधन भी हो गया है।
भारत मंदिरों का देश है। कई मंदिरों में मनौती मान कर हाथ में मौली बंधवा लेते हैं। मन्नत पूर्ति पर वह नाड़ा उसी मंदिर में पेड़ पर लटका देते हैं।
अनन्त चतुर्दशी पर पूजन पश्चात बाह पर नौ गाँठें लगा रेशमी या सूती डोरी से बना अनन्त बांधते हैं। इसे सालभर तक रखते हैं। अगले वर्ष पुनः नया बाँधते हैं।
चैत्र माह की कृष्णपक्षी दशमी को दशामाता का व्रत स्त्रियाँ करती हैं। देखा जाए तो गृहस्थी की दशा सुधारने का दायित्व भी इन पर है। इस हेतु दस कच्चे सूत के धागों को मिला उसमें दस गाँठें लगा माला बनाते हैं। इसे हल्दी से रंगा जाता है। ये दस गाँठें प्रतीक हैं-सुख, शान्ति, संतोष, समृद्धि, अखंड सौभाग्य, घर की खुशहाली, धन धान्य की पूर्णता, आरोग्य, वंश वृद्धि व परम्परा तथा आख़री है सद्बुद्धि (सौजन्य Manisha Nagar बहन)।
पूजा सामग्री, पीली माला व कच्चा सूत ले पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है। 108 परिक्रमा के साथ सूत लपेटा जाता है।
माला धारण कर तर्जनी से पीपल की थोड़ी सी छाल उखाड़ इसे घर की तिजोरी में रखते हैं। एक वर्ष पश्चात पुरानी के स्थान पर नई छाल शगुन के तौर पर रखते हैं। घर परिवार की दशा सुधारने का यह व्रत बड़ी श्रद्धा से किया जाता है।
जी, इस संदर्भ में रिश्तों में पड़ने वाली गाँठें भुलाई नहीं जा सकती ।
जैसे ही एहसास हो कि रिश्तों के तानों बानों में उलझाव हो रहा है, उसे तत्काल सुलझा लें। ताज़ी गाँठें खोलना आसान होता है। समयके देकर परस्पर मिल बैठ इन्हें खोल लें वरना वक़्त रिश्तों को लील लेगा। पुरानी गाँठें ही महारोग कैंसर को न्यौता देती है।
अतः रिश्तों को समय देकर उन्हें बचालें। छोटी सी बात समस्या ना बन जाए, इससे पूर्व ही क्यूँ न समाधान ढूंढ लें। रोग की चिकित्सा कराने से बेहतर है सावधानी बरतना।
सरला मेहता

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