कहानीबाल कहानी
नंदनवन में बहुत सारे पेड़ एक साथ मिलकर रहा करते थे। नमकू नीम व अमकू आम भी वहीं पर आस - पास ही रहते थे।
नमकू नीम बहुत अकड़ू स्वभाव का था। उसे न किसी से बात करना पसंद था और न ही किसी की मदद करना पसंद था। वो जवान व बहुत लंबा था, तो उसे अपनी खूबसूरती पर बहुत घमंड था। वो हमेशा अपनी ही मस्ती में झूमता रहता।
वहीं अमकू आम सीधे-साधे स्वभाव का बुजुर्ग पेड़ था। कद उसका छोटा जरूर था पर दिल उसका बहुत बड़ा था। हमेशा वो सबकी मदद के लिए तैयार रहता था। नंदनवन में सभी अमकू आम को बहुत पसंद करते थे और प्यार से सभी उन्हें " दादा " कहते थे। अमकू आम भी सब पर अपना प्यार - दुलार बिना स्वार्थ के पूरी तरह लुटाते थे।
एक बार नंदनवन में बहुत भयंकर आंधी - तूफान आया। कई - कई दिनों तक मूसलाधार बारिश होती रही। पहले - पहले तो सभी लोग खुश हुए नंदनवन में बारिश होने पर। लेकिन कई - कई दिनों तक लगातार भारी मात्रा में पानी बरसने से सभी की सांसे बेचैन थी कि न जाने कब कौन उखड़ कर अपनी पुरखों की जमीन से अलग हो जाए। सभी बेचैनी से बारिश रुकने का इंतजार कर रहे थे व मन ही मन ईश्वर से बारिश के रुकने की प्रार्थना कर रहे थे।
आखिरकार ईश्वर ने उन सबकी प्रार्थना सुन ली और बारिश अब बंद हो चुकी थी। नंदनवन में जल्दी ही फिर से पहले के समान ही दिनचर्या शुरू हो गई। और अब धीरे-धीरे वहां सूर्य की चमकती किरणें दिखाई देने लगी थी।
नमकू नीम पर लंबा होने की वजह से सूर्य की किरणें बिना किसी रूकावट के सीधी पहुंचती थी तो उसका गीलापन और पेड़ों की बजाय थोड़ा जल्दी सूख गया था।
उन्हीं दिनों रानी मधु मक्खी शहद इक्कठा करने के लिए छत्ता बनाना चाह रही थी तो उसे अपना छत्ता बनाने के लिए सही जगह की तलाश थी। वह ऊंचाई वाली सूखी जगह की तलाश में थी। और नमकु नीम की डाल से सही जगह उसे पूरे नंदनवन में नहीं लगी, क्योंकि नमकु नीम के लंबा होने की वजह से वहां बारिश का गीलापन नहीं था। उसकी डालियां अब सूख चुकी थी व डालियां ऊंचाई पर होने से वहां शहद का छत्ता बनाने पर दूसरे जानवर उन्हें नुकसान भी नहीं पहुंचा सकते थे।
रानी मधुमक्खी नमकू नीम के पास गई और उसके पेड़ पर छत्ता बनाने की इजाजत मांगने लगी। लेकिन ये क्या ? अकड़ू नमकू नीम ने बेचारी रानी मधुमक्खी का दिल ही तोड़ दिया। और कहने लगा कि " नहीं मैं नहीं बनाने दूंगा तुम्हें मेरी डाल पर छत्ता। मैं नहीं चाहता कि तुम मेरी सुंदर डालियों पर गंदगी फैलाओ। "
रानी मधुमक्खी ना सुनकर बहुत दुःखी हुई। वो नमकू नीम से हाथ जोड़कर विनती करने लगी और कहने लगी कि " भाई साहब ! शहद तो सभी को बहुत पसंद होता है, पता नहीं आपको ये कैसे पसंद नहीं ? और नहीं जी, हम गंदगी नहीं फैलाएंगे, हम तो सफाई के पूरे नियमों का पालन भी पूरी निष्ठा से करेंगे। बस आप तो हमें अपने यहां रहने की इजाजत दे दीजिए। हमें बहुत जरूरत है आपकी सूखी डालियों की। हम आपके यहां मुफ्त में भी नहीं रहेंगे, अपने ठहरने के एवज में हम आपको हमारा मीठा शहद किराए के रूप में देंगे। हमारा मीठा - मीठा शहद खाकर आपका गला भी बहुत मीठा व सुरीला हो जाएगा। "
रानी मधुमक्खी की बात सुनकर भी सनकी नमकू ने उसकी मदद नहीं की। और अपना मुंह दूसरी तरफ घूमा लिया।
बेचारी रानी मधुमक्खी अपना उदास चेहरा लेकर सब तरफ अपनी पैनी निगाहें दौड़ाती हुई अपने छत्ते के लिए सूखी जगह खोज रही थी।
अमकू आम दादा रानी मधुमक्खी को हैरान परेशान होता देखकर उसकी परेशानी का कारण पूछने लगे। तब रानी मधुमक्खी ने दुखी होते हुए सारा हाल अमकू दादा को कह सुनाया व नमकू नीम से हुई बात भी बता दी।
सारी बातें सुनकर अमकू दादा को रानी मधुमक्खी के लिए बहुत दुख हुआ। उन्होंने रानी मधुमक्खी से कहा, " मेरी बच्ची मुझे तुम्हारे लिए बहुत बुरा लग रहा है। मैं तुम्हारे कुछ काम आ सकूं तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। तुम चाहो तो मेरी सबसे ऊंची वाली डालियों पर तुम आराम से रह सकती हो और तुम वहां अपना शहद के लिए छत्ता भी बना सकती हो। और हां मुझे तुमसे कोई किराया नहीं चाहिए। तुम मेरी बच्ची जैसी हो, बिना परेशानी के तुम मेरे यहां रह सकती हो। "
रानी मधुमक्खी जगह ढूंढ - ढूंढकर बहुत परेशान हो रही थी तो उसे अमकू दादा की बात जंच गई और वो आ गई अपने परिवार सहित अमकू दादा की ऊंची डालियों पर रहने। और जब शहद तैयार होने लगा तो रानी मधुमक्खी ने शहद की रखवाली करने के लिए अपने सैनिकों को पहरे पर बैठा दिया।
एक दिन अमकू दादा को किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। उन्होंने देखा कि नमकू नीम सुबक - सुबक कर रो रहा था। अमकू दादा ने उससे रोने का कारण पूछा तो नमकू नीम ने कहा कि " दादा ! मैं अकेला पड़ गया हूँ , कोई भी मेरी मदद करने को तैयार नहीं, दादा आप तो मेरी कुछ मदद कर दो .. मुझे बचा लो दादा ! मैं मरना नहीं चाहता, कल मुझे आयुर्वेद दवाओं वाले कुछ मनुष्य काटने के लिए आने वाले हैं। मैंने उन्हें आपस में एक दूसरे से बातें करते हुए सुना है, दादा ... मुझे बहुत डर लग रहा है .... मेरी मदद करो ना दादा ! "
अमकू आम सोच में पड़ गया। दयालु तो वो था ही। वो सोचने लगा कि नमकू नीम को कैसे बचाया जाए ? भले ही ऊपर से वो कड़वा है पर उसका दिल बहुत साफ है। नादानी में वो गलतियां कर बैठता है, लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि मैं भी उसकी बराबरी करूं या कि उसी के जैसा बन जाऊं। नहीं ... नहीं वो अभी बच्चा है , मुझे जरूर उसकी मदद करनी चाहिए।
मन ही मन कुछ सोचकर अमकू आम ने रानी मधुमक्खी को आवाज लगाई और उसे सारा किस्सा बताकर मदद करने के लिए कहा। लेकिन नमकू नीम का नाम सुनते ही इस बार रानी मधु भी भड़क उठी कहने लगी, " दादा ! कोई और होता तो मैं जरूर मदद करती। लेकिन नमकू नीम ! उस अकड़ू की मदद तो मैं भूलकर भी नहीं करूंगी। रहने दीजिए उसे अकेला। उसके किये की यही सजा है। उसने कौन सी मेरी मदद करी थी जब मुझे उसकी मदद की जरूरत थी, तो अब मैं उसकी मदद क्यों
करूं ? " ये कहकर रानी मधु मुँह घूमाकर चल दी वापिस अपने कमरे में।
अमकू आम अब बहुत उदास था, नमकू नीम की परेशानी देखकर।
अगले दिन जब कुछ लोग कुल्हाड़ी लेकर नमकू नीम के पास आये, तो उन्हें देखकर नमकू नीम की सांसे थमने लगी। वो डर के मारे बुरी तरह कांपने लगा। और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
तभी नमकू नीम ने देखा कि रानी मधुमक्खी अपनी सेना को लेकर वहां आ पहुंची है और उन सब ने मिलकर उन लोगों को डंक मार - मारकर भगा दिया है। नमकू नीम की आंखों में आंसू जरूर थे पर होठों पर अब उसके मुस्कान आ गई थी।
उसने रानी मधुमक्खी को उसकी जान बचाने के लिए बहुत सारा धन्यवाद दिया। और अपनी पिछली गलती के लिए कान पकड़कर माफी भी मांगी।
रानी मधु कहने लगी कि " कोई बात नहीं। आगे से ये सबक जरूर याद रखना और हमेशा सभी की मदद करना। भूलना नहीं कि जैसे दूसरों को कभी हमारी मदद की आवश्यकता होती है वैसे ही हमें भी कभी किसी की मदद की जरूरत पड़ सकती है। अमकू दादा ने जरूरत के वक्त मेरी मदद की थी, तो जब उन्होंने मुझे तुम्हारी परेशानी बताई, तो मैं उनका कहना कैसे नहीं मानती भला। और फिर मैं तुम्हारी मदद को पहुंच गई। चलो, अब मैं चलती हूँ , बहुत काम बाकी है अभी घर पर। शाम को तुम्हारे लिए थोड़ा मीठा शहद भेजती हूँ खाने को, ताकि तुम्हारी कड़वी जबान कुछ तो मीठी हो। "
ये सुनते ही नमकू नीम मंद - मंद मुस्कुराने लगा और रानी मधु भी हंसते हुए अपने घर की ओर उड़ चली।
अमकू आम ये सब देखकर अब बहुत खुश था।
© पुष्पा श्रीवास्तव