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भूलक्कड़ परी - Pushpa Srivastava (Sahitya Arpan)

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भूलक्कड़ परी

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दक्षिण में सुदूर पर्वत के पीछे अनजानी घाटियों के पार परी लोक में सूर्यभानू सिंह नामक राजा राज करते थे। सत्य वक्ता व न्याय प्रिय राजा थे वे।

उनकी न्याय प्रियता दूर-दूर तक मशहूर थी। अपनी प्रजा की देखभाल वे बहुत अच्छे तरीके से करते थे। प्रजा की हर सुख - सुविधा का वे बहुत ध्यान रखते थे।

राजा सूर्यभानू सिंह के दो बहुत ही सुंदर व प्यारी पुत्रियां थी।

बड़ी पुत्री सोनपरी जितनी रूपवान थी उतनी ही गुणों की खान भी थी। बहुत समझदार थी वो। अपने माता-पिता की बताई हर बात मानती थी वो।

वहीं छोटी पुत्री गिन्नीपरी बहुत ही नटखट व मस्तीखोर थी। प्यारी तो बहुत थी वो लेकिन लोगों को परेशान करने में उसे बड़ा मजा आता था।

परी लोक के सभी लोग उसकी शरारतों से बहुत परेशान थे। आए दिन राजा सूर्यभानू सिंह के पास राजकुमारी गिन्निपरी की शिकायतें पहुंचती ही रहते थी।

राजा को बहुत गुस्सा आता था। दुखी भी बहुत होते उसकी शरारतें देखकर ,  लेकिन राजकुमारी को हर बार समझा कर ही गलती के लिए माफ कर देते।

क्योंकि उन्हें राजकुमारी की एक कमी का बहुत अच्छे से एहसास था। वो ये कि राजकुमारी गिन्निपरी थोड़ी देर बाद ही अपने किए हुए हर क्रियाकलाप को भूल जाती थी।

तो पिता होते हुए राजा सूर्यभानू सिंह ने कभी गिन्निपरी के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया, उसकी गलती होने पर। केवल समझा-बुझाकर ही बात को खत्म कर देते।

राजा सूर्यभानू सिंह की दोनों राजकुमारियां जादू करने में अपने पिता के समान ही निपुण थी।

बड़ी पुत्री सोनपरी अपने सीखे हुए जादू से लोगों की मदद करती, उन्हें दुख - तकलीफ से बचाया करती थी।

वहीं छोटी पुत्री गिन्नीपरी भी जादू करना जानती थी, लेकिन अपने सीखे हुए जादू से वो भूलवश लोगों को परेशान कर बैठती। जैसे - लोगों के खाने-पीने की वस्तुओं को कंकड़ - पत्थर में बदल देती, बच्चे खेल रहे होते तो उनके बालों को जादू से आपस में बांध देती, लोगों की जरूरी वस्तुओं को उनसे दूर कर के ऊपर हवा में उड़ाने लगती, तो कभी उन वस्तुओं को बर्फ बना देती।

और फिर थोड़ी ही देर में सब बातें भूल जाती कि उसने थोड़ी देर पहले क्या गलती करी थी। अपने भूलने की आदत पर फिर वो पछताती भी, बहुत दुख भी होता उसे, लेकिन उसे विश्वास नहीं होता था कि वो गलती उसने की थी।

ऐसे ही एक बार खेले - खेल में गिन्नीपरी ने परीलोक में खेल रहे सब छोटे बच्चों को अपने जादू से जानवर बना दिया। परीलोक के सभी लोग बहुत गुस्सा हुए और सभी एक साथ मिलकर राजा सूर्यभानू सिंह के पास पहुंच गए राजकुमारी गिन्निपरी की शिकायत करने।

कोई एक होता तो राजा उसे किसी तरह समझा भी देते। लेकिन आज तो पूरा परीलोक ही उनके सामने था राजकुमारी गिन्नीपरी की शिकायत लेकर।

आखिर क्या करते वो ? दिल कड़ा करके उन्हें मजबूरी में राजकुमारी गिन्नीपरी को सजा देनी ही पड़ी, सही न्याय करने के लिए। 

राजकुमारी गिन्नीपरी की ये सजा थी कि अब उसे हमेशा - हमेशा के लिए परीलोक छोड़कर धरतीलोक पर रहना होगा।

सजा के तौर पर राजा सूर्यभानू ने अब अपनी प्यारी राजकुमारी गिन्नीपरी को जादू से गिल्लू गिलहरी बना दिया था। उसकी सारी जादुई शक्तियां भी छीन ली गई।

और उसे यह कहकर धरती लोक पर भेज दिया गया कि तुमने बच्चों को जानवर बना दिया था ना, तो अब तुम्हारी सजा बच्चों के द्वारा ही पूरी होगी।

जिस दिन आसमान में इंद्रधनुष दिखाई दे रहा होगा, सुहाने मौसम से लोगों के दिल में खुशी की लहर दौड़ रही होगी, बच्चे खुशी से नाच - गा रहे होंगे और वे खेल - खेल में तुम्हें पकड़कर सुंदर वस्त्र पहनाकर परी के समान तैयार कर देंगे, तो उसी क्षण तुम फिर से परी बन जाओगी व अपना वास्तविक परीरूप प्राप्त कर लोगी।

लेकिन तब तक तुम्हें धरती लोक में ही गिल्लू गिलहरी बनकर जानवर के रूप में रहना होगा।

और तभी से आज तक राजकुमारी गिन्निपरी धरती लोक पर गिल्लू गिलहरी बन कर रह रही है व बेसब्री से इन्तजार कर रही है फिर से परी बनकर अपने परीलोक जाने का।

हां भूलने की आदत अभी भी उसकी पहले जैसी ही है। वह अपने खाने पीने की चीजें जमीन में दबा कर थोड़ी ही देर में भूल जाती है कि उसने वो चीजें कहां छिपाकर दबा दी।

©पुष्पा श्रीवास्तव

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दादी की परी
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