कविताबाल कविता
बाल गीत
विषय-पृकृति
मैं हूँ पृकृति
मैं हूँ हर जीवन का सार
देखो मेरे रंग निराले
चलो मिलाउ सबसे आज।
हरे भरे खेतों को देखो,
मन को खूब लुभाते हैं,
अन्न हमारा बनकर फिर वो शक्तिमान बनाते हैं ।
रंग बिरंगे बाग बगीचे कैसे जग-मग करते हैं ,
सुंदर सुंदर तितली-पंछी नाच नाच इठलाते है ।
कल कल करता बहता पानी,
लगता है अमृत के जैसा,
इसके बिना ना जीवन संभव,
ये तो सबका जीवन दाता।
कष्ट हजारों सहकर भी मैं तुमको जीवन देती हूँ,
इतना ही बस माँगू तुमसे,
रखो मुझे स्वच्छ और साफ,
पेड़ लगाओ मुझमें ज्यादा,
रहे बनी मेरी मुस्कान ।
सबको जीवन देती हूँ मैं,
हर प्राणी मेरी पहचान,
कहूँ अंत में इतना ही मैं,
मैं हूँ हर जीवन का सार ।
नेहा शर्मा