लेखआलेख
आ0 महादेवी जी वर्मा
व्यक्तित्व
परिचय एवं विवरण
आदरणीया महादेवी वर्मा का जन्म 21 मार्च 1907 को फर्रुखाबाद
(यू पी ) में होली के पावन पर्व के दिन हुआ था । पिता का नाम श्री गोविन्द प्रसाद तथा माता का नाम श्रीमती हेमरानी था।
परिवार में सात पीढ़ियों पश्चात पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई। अतः उनका महादेवी नामकरण हुआ।और यथार्थ में भी वे विश्व सहित्याकाश में विद्या की देवी शारदा स्वरूपा सिद्ध हुई। मुहँबोले भाई महाकवि निराला जी उन्हें सरस्वती कहा करते थे।उनके जन्म के दिन होली के रंग भी बरस रहे थे। इन्हीं सप्तरंगों की इंद्रधनुषी आभा को अपनी रचनाओं में बिखेर दिया। सात वर्षीय नन्हीं बालिका की पहली कविता है"बांके ठाकुर जी बोले हैं,,,"
बालवय में दुल्हन बनी और सत्रहवें वर्ष में वे पिया श्री स्वरूप नारायण के घर पहुँची। रंग रूप में साधारण थी किन्तु अति सुंदर ह्रदय व अथाह ज्ञान से परिपूर्ण दिमाग़ ईश्वर ने दिया था। शायद विधि ने किसी और महान कार्य हेतु उन्हें रचा था। बस ससुराल से आकर अपनी नई दुनिया बसा ली। तमाम रंगों से विदा ले श्वेत रंग धारण करने लगी। और आरम्भ हुई एक साधिका की तप साधना। किंतु विरह की पीड़ा उनकी रचनाओं के माध्यम से उनके साथ जीवनपर्यन्त रही।
वे सन्यासिनी भी बनने वाली थी किन्तु संन्यास का आडम्बर व खोखलापन उन्हें रास नहीं आया।स्वतन्त्रता आंदोलन में सहभागिता हेतु बापू और गुरुदेव से भी भेट की।उनके आदेश से समाज सेवा का बीड़ा उठाया।
वे अपनी रचनाओं में रचे बसे दर्द-वेदना,अव्यक्त प्रेम के कारण आधुनिक युग की मीरा कहलाई। साहित्य प्रांगण में विविध रंगोंको बिखेरती अमृता मानी गई।
वे छायावाद की महान कवयित्री थी। छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक वे थीं। उनके साथी थे पंत व
सुभद्रा कुमारी तो राखी बंधवाने वाले भाई थे
अक्खड़ निरालाजी।
उनकी कविताएं दिल की गहराइयों तक उतर जाती हैं।
"मैं नीर भरी दुःख की बदली,,
उमड़ी कल थी मिट आज चली।"या "पथ रहने दो अपरिचित,प्राण रहने दो अकेला।"आदि पंक्तियाँ बार बार दुहराने को जी चाहता है। ह्रदय की सारी पीड़ा प्रेम दया भावनाएँ उन्होंने रचनाओं में उड़ेल दी। संवेदनाओं की निर्मल निर्बाध गंगा यमुना धारा युगों युगों तक जन मानस को भिगोती रहेंगी।
उनके कई काव्य रचनाएँ जैसे यामा नीरजा नीहार रश्मि सन्धिनी दीपशिखा दीपदान सांध्यगीत अग्निरेखा सप्तवर्णा आत्मिका नीलाम्बरा आदि जगत प्रसिद्ध हैं। उनकी प्यारी सी कई कहानियाँ पशु पक्षियों पर आधारित, मन को अंदर तक गुदगुदा देती है। गिल्लू गिलहरी, -सोना हिरन,गौरा
बछिया , नीलू कुत्ता आदि तो बस पढ़ते ही जाओ। ये सारे पशु पक्षी उनके घर के सदस्य ही थे।और भी कहानियाँ हैं जैसे बिंदा बिबिया निक्की और रोजी।उनकी रचनाओं का भंडार हमारे हिंदी साहित्य की विरासत है। यह महान
विभूति 11 सित 1987 को प्रयागराज तीरथ धाम में इस संसार से विदा हो गई। किन्तु सहित्याकाश में उनकी कीर्ति ध्रुव तारे की तरह अजर अमर रहेगी। ऐसी महान दैवीय आत्मा को शत शत नमन
व श्रद्धा सुमन अर्पित।
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित