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डायरी में रखे मोरपंख - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

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डायरी में रखे मोरपंख

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डायरी में संजोए मोरपंख

मधुरिमा ,बेटे के प्रोजेक्ट हेतु अपना खज़ाना खंगालने लगी। हाथ में आ गई अपने प्रिय दोस्त श्रेयस द्वारा भेंट की गई डायरी। और एक मोर पंख आ गिरा आँचल में। अभी तक ज्यों का त्यों है अतीत की यादों की भाँति। दोनों ने साथ जीने मरने की कसमें खाई थी।
वह मनहूस दिन कैसे भूले। दोस्त श्रेयस के साथ उसने अनजाने में एक रूहानी रिश्ता बना लिया था। माँ से मिलाने
अपने घर ले गया था। माँ ने भावुक हो बताया था कि बेटे का ब्याह बचपन में हो चुका है। इस सावन में बहु को लाएँगे। अश्रु बहाती मधुरिमा को बाहों में भर बोली," बेटी,मैं सब जानती हूँ तुम दोनों के बारे में। बेटे को भी हमने उसकी पढ़ाई पूरी होने के बाद बताया। अब फैसला तुम दोनों को करना है।"
" नहीं माँ , मैं किसी और की अमानत नहीं छीन सकती। " कहती हुई मधुरिमा निढाल सी रिक्शे में बैठ गई। जिस दोस्त से जीवन भर साथ निभाने का वादा किया, कैसे समझाएगी उसे सोचते हुए घर पहुँची।
माँ पापा कब से मना रहे हैं, " गुड़िया, इतना काबिल लड़का हर किसी को नहीं मिलता।" वह चहकती हुई माँ से बोली, " वो गाना गाओ ना बचपन वाला,गोरे गोरे हाथों में मेहँदी ,,,। " पापा ने ताबड़तोड़ इंतज़ाम कर लिए। सबसे पहला निमंत्रण श्रेयस के घर लेकर गई । वह बौराया सा अपने होश हवास खो बैठा ," ये किस जन्म का बदला लिया ,मधु तुमने। क्या बिगाड़ा था मैंने
विश्वास नहीं हो रहा है कि तुम जैसी सिद्धांत वादी इस तरह वादा खिलाफ़ी करेगी। "
मधुरिमा शान्ति से दिलासा देते समझाने लगी, " मुझे तुम्हारी माँ ने सब बता दिया है। हम दोनों ही अनभिज्ञ थे। सोचो , यदि तुम्हारी बहन के साथ यह हादसा होता तो।
फ़िर उस मासूम का क्या कुसूर। हम दोस्त बने रहेंगे। अच्छा तुम्हें जोड़े से मेरी शादी में आना है।"
दोनों की वार्तालाप सुन श्रेयस की माँ, मधुरिमा को गले लगाती कहती है, " आज मुझे एक बेटी मिल गई है,बेटे की दोस्त के रूप में।"
हाँ, श्रेयस नाम बहुत पसंद था पति को। और दोनों ने बेटे का नाम भी वही रख दिया। प्रोजेक्ट पूरा करवाते वह बेटे से कहती है,"अच्छा जल्दी से पूरा करो। मुझे खाने की तैयारी करनी है। पापा के ऑफ़िस से गेस्ट्स आने वाले हैं ।
अभी ट्रांसफर पर आए अंकल अपने परिवार के साथ आने वाले हैं।'
बेल बजने पर मधुरिमा दरवाजा खोलती है,
"अरे! यह क्या सपना देख रही
हूँ। तुम !!! भाभी और ये परी,,,।" श्रेयस खोया सा कुछ बोल नहीं पाया। वह नन्हीं गुड़िया ताली बजाते मोर पंख सी लहराई ,"आंटी मैं ना
मधुरिमा हूँ ।"
सरला मेहता

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

भावपूर्ण रचना

दादी की परी
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