कविताअतुकांत कविता
तितलियां कलियों सी
परियां किरणों सी
धूप का मुखड़ा
बादल का टुकड़ा
समेटकर
सहेजकर
बड़े प्यार से
सजा दिया है मैंने
आज अपने शीशे के घर के
शयनकक्ष में मेज पर रखे
पारदर्शी सफेद चमकीले
कांच के गिलास में
उनकी जड़ें पकड़ रही हैं
कांच की रेत का धरातल
पानी के रास्तों से गुजरती
हुई
इस सच से अंजान कि
यह सुंदर प्रकरण
क्षणभंगुर है
अस्थाई है
असत्य है
उनके भी अभी
पल दो पल में ही
खत्म होने वाले
जीवन के समान।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001