कवितालयबद्ध कविता
मैं कविता,
हर किसी के जज़्बात को समेटें सरिता सी बहती रहती हूँ,
किसी के अनगिनत किस्से को लिए रहती हूँ....
एक लफ़्ज़ से न जाने कितने कानों में हौले से आवाज़ दे जाती हूँ,
कभी मोहब्बत के अल्फाज़ में इतराती हूँ,
तो कभी भयानक रस में तब्दील हो जाती हूँ..
मैं कविता हूँ......
मेरा आकार नहीं है....
लेकिन निराकार भी नहीं हूँ....
मैं कभी किसी के लिए आईना...
तो किसी के लिए आवाज़ बन जाती हूँ...
मैं....किसी के बहकावे में नहीं...रहती...मैं अपने धुन में मस्त रहती हूँ,
मैं कविता किसी का जीवन तो किसी का चरित्र लिखती हूँ..
मैं चुप सी हूँ....किन्तु बहुत कुछ कहती हूँ..
मैं कविता हूँ...
सब के दिलों में रहती हूँ....
किसी के होंठो में गुनगुनाहट तो किसी के अधरों की प्यास बनती हूँ,
किसी के लिए संदेश तो किसी के लिए आस बनती हूँ...
मैं कविता हूँ...
बस इसीलिए मैं कहती रहती हूँ....
मैं कविता हूँ.....
✍️ गौरव शुक्ला'अतुल'©