कविताअतुकांत कवितालयबद्ध कविता
कविता
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जहां ना सूरज की किरणें पहुंच पाती
वहां कवि की कलम है पहुंच जाती
कल्पनाओं की वो है पंख लगाती
बिना पंख का वो उड़ान भरती
मन की सारी बातों को रखती
गागर में सागर को भरती
शब्दों की मोती जड़ती
तब बनती स्वर्ण कृति
आखर - आखर शब्दों को जोड़ती
शब्दों से ही शब्दावली बन जाती
ये भावनाओं की है पाढ पढ़ाती
वीणा की यह तान बन जाती
बिन कहे ही सब कह जाती
जीवन में सरसता है लाती
अभिव्यक्ति की समधुर
ये कविता कहलाती
©✍️राजेश कु० वर्मा 'मृदुल'
गिरिडीह (झारखण्ड)
📲७९७९७१८१९३