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खिड़की - Meeta Joshi (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

खिड़की

  • 514
  • 6 Min Read

नई कॉलोनी में गई तो देखा,बगल वाले मकान में एक बुजुर्ग सी महिला हमेशा खिड़की से बाहर झांँकती रहतीं।पति का बनाया मकान था इसलिए शायद घर के उस कोने में अपना अधिकार समझतीं।सर्दी-गर्मी,वार-त्यौहार,हर दिन उनके लिए एक सा था।भरा-पूरा परिवार था,पर वो अकेली।जब मुझे देखतीं,तो पूछतीं,"बस दो बेटियांँ ही हैं तुम्हारे?"देखते ही देखते समय बीतने लगा।अब,मेरी दोनों बेटियों की 'खिड़की वाली दादी' बन चुकी थीं।कहीं जाना हो या चाबी देनी हो एक विश्वास सा था कि आंटी खिड़की से देख रही होंगीं।उनकी आंँखों में अकेलेपन की कसक साफ दिखाई देती।कहने को घर में पोता-पोती सब थे पर उनके लिए सब ना के बराबर।बस खाने के वक्त उन्हें लगाई आवाज़ सुनाई देती।
दो-दिन से देख रही थी खिड़की बंद है,जानने की उत्सुकता से पूछा,तो पता चला बंटवारा हो गया है।सोचने लगी तीन बेटे है तीनों पहले से अलग हैं सब संपन्न हैं फिर काहे का बंटवारा।

जल्द ही सुनने में आया माँ का बंटवारा हो गया है।तीन-बेटे हैं तो चार-चार महीने सबके रहेंगी।मैं सोच रही थी बंटवारा!किसका हुआ?माँ की आस का या उसके दिए संस्कारों का या 'मेरे पास बेटा है' के विश्वास का!मैं खुश थी ये सोच कि मेरा बंटवारा कभी नहीं होगा।
@मीताजोशी

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Girish Upreti

Girish Upreti 3 years ago

हमेशा की तरह खूबसूरती से जज़्बातों को सजीव चित्रित करती रचना👏👏आज के समय की कड़वी सच्चाई

Bina Chaturvedi

Bina Chaturvedi 3 years ago

ओह!बहुत भावुकता से हकीकत को बयां किया है

Seema Pande

Seema Pande 3 years ago

Heart touching story

Shivangi lohomi

Shivangi lohomi 3 years ago

Emotional story 💓👌

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

मर्मस्पर्शी रचना

Meeta Joshi3 years ago

धन्यवाद सर🙏

दादी की परी
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