कहानीलघुकथा
शीर्षक- संवेदनशून्य दुनिया
अपने नाटे क़द और काले रंग के कारण कावेरी बचपन से उपहास का पात्र बनती चली आई। उसकी मन:स्थिती को समझने का प्रयास न ही कभी परिवार ने किया और न कभी ऐसा ही हुआ कि समाज से उसे प्रशंसा मिली । उसके प्रति सब संवेदनशून्य । जब विवाह की उम्र हुई तो पिता ने एक विधुर जिसके दो बच्चे पहले से थे, के साथ कावेरी का विवाह कर अपने दायित्व को पूरा कर दिया।
विवाह भी कावेरी को कोई सम्मान नहीं दिला सका ।सिर्फ बंधन मात्र ही बना।पति को कावेरी में कोई दिलचस्पी नहीं थी, उसे तो बच्चों की परवरिश के लिए लाया गया था। उसकी भावनाओं- आवश्यकताओं से किसी को कोई सरोकार नहीं । यहां भी उसके प्रति सब संवेदनशून्य।
जीवन में इस तरह बार-बार भावनाओं से छले जाने का परिणाम यह हुआ कि कावेरी में रोष और कुण्ठा ने जन्म ले लिया और आखि़रकार वह भी इन पाषाणों के बीच एक पाषाण बन कर रह गयी।
मौलिक
डॉ यास्मीन अली।