कवितालयबद्ध कविता
कविताओं की नगरी है बेहद ही अद्भुत
हर तरह की चाक चौबंद वायु बिल्कुल शुद्ध
हर रंग के रंग में कविताओं का खिलना
आपस में ना कोई बैर काटों से भी मिलना
चांद जहां ठंडा भी है और गरम हो जाता
बारिश की भीनी मौसम में रिमझिम आग लगाता
जहां सुरज जलता तो है पर ठंडक देता आखों को
हर तरफ से जो उलट के रख देता सारी बातों को
माँ की जहां प्यारी लोरी थपकी देती सपनों को
और बहन की प्यारी राखी बांधे रहती अपनों को
जहां पवन भी चुपके से कानों में कुछ कहती है
प्रेमी के चाहत में देखो प्रेयसी जहाँ तडपती है।
पागल जहां सभी मतवाले बुद्धिमान सिर्फ कवि है
उसकी पहुँच वहां तक जाती जहां न पहुंचा रवि है
जहां भाषा बड़ी अलबेली ठेठ में जहां मसाला है
अवधी ,ब्रजी,बुंदेलखंडी और बनारसी का बोलबाला है।
जहाँ चाय पर गपसप होता अपने होते साथ में
भावों की दुनियां में हरदम गोते लगते रात में
कविता सुहावन है मनभावन सबके दिलो की हाला
जो ना बाचें मुख से अपने पन्नों पर उड़ डाला।