कहानीलघुकथा
नमन मंच
दिनांक --२१/०३/२०२१
वार-- रविवार
आयोजन- लघुकथाएं ही लघुकथाएं
विधा-- लघुकथा
विषय-- स्वार्थी रिश्ते
चंदा है तू मेरा सूरज है तू मेरी आँखो का तारा है तू,,
अचानक अमन की आँख खुली और उसने अपना सर अपनी माँ की गोद में पाया। अरे! माँ आप यहाँ अनीता और आदित्य कहाँ है। माँ ने कहा बेटा तुझे पाँच दिनों के बाद होश आया है ,रूक सब बताती हूँ । बेटा बहु तो तेरे एक्सीडेंट के बाद ही चली गई और ये कागज दे गई है।
अमन ने देखा तलाक के कागज थे और साथ में एक खत जिसमें लिखा था अमन अब अपाहिज हो गया है इसलिए अनीता उसे छोड़ गई है।अमन रोने लगा रोते-रोते माँ से बोला मैं कितना स्वार्थी हो गया था, और आज अनीता स्वार्थी ही गई है, वह सोचने लगा कैसे पिताजी के मरने के बाद पढ़ी-लिखी नहीं होने के बावजूद भी कितनी मुसीबतें झेलकर माँ ने उसे पाल-पोसकर बड़ा किया। अनीता से शादी हुई बहुत ही सुंदर सुशील थी सब तारीफ करते पर पता नहीं वो माँ से क्यों चिढ़ती, पर माँ ने कभी भी अनीता कि शिकायत नहीं की थी, अनीता ने आदित्य के होने के बाद जब ये शर्त रखी कि वो घर में तभी आयेगी जब अमन की माँ घर से बाहर जायेगी, तब भी माँ ने मेरी खुशी के लिए बिना अपना स्वार्थ देखे अपनी मौन स्वीकृति दे दी, अमन ने सोचा मैं चाहता तो माँ को रोक सकता था, पर मैं अपनी पत्नी और बेटे के प्यार में स्वार्थी हो गया था।
रोते हुए उसने उन कागजों पर माँ के मना करने के बावजूद भी हस्ताक्षर कर दिए।और एक लम्बी साँस लेते हुए कहा कि माँ मेरे और अनीता के इस स्वार्थी रिश्ते की कोई भी मंजिल नहीं है , तू मुझे पहले भी पालती थी और फिर से अपने अपाहिज बेटे को तुझे ही पालना पड़ेगा।
दिप्ती शर्मा
जटनी( उड़ीसा )
स्वरचित व मौलिक