कविताअतुकांत कविता
यह घर का दरवाजा
खुलेगा
थोड़ी प्रतीक्षा करो
खुलेगा
रात को देर से सोया है
लगता है
सुबह देर तक सो रहा है
किसी अंजानी डगर पर
सपनों की दुनिया में
खोया है
घर लौटकर आने में कुछ समय तो
अवश्य लगेगा
भोर जैसे होती है
रात्रि के विश्राम के बाद
वैसे ही इसे सूरज की भांति
प्रकट होने के लिए
अभी थोड़ा सा समय लगेगा
उठ जायेगा जब
दरवाजा भी घर का खुल
जायेगा तब
अभिनंदन करेगा
बाहें फैलाकर फिर
किरणों की परियों का
अपने हिस्से की रोशनी भी वह
कर देगा उनपर निछावर
जो बचाकर रखी थी उसने
अपनी झोली में
पिछले ख्वाब की
चांद रात में।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001