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बूढ़ा भगत - सोभित ठाकरे (Sahitya Arpan)

कविताबाल कवितालयबद्ध कविताबाल कविता

बूढ़ा भगत

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बूढ़े भगत की सुनो कहानी
रखता था वो भीतर कपटी मुँह पर मीठी वाणी
बैठ सरोवर पर लगा संतो सा पाठ सुनाने
बातों से लगा मछलियों को भरमाने
मछलियाँ थी भोली -भाली और छोटी बड़ी
फंस गई उसके जाल में खड़ी -खड़ी
एक -एक कर चट करने लगा
बूढ़ा भगत पेट अपना भरने लगा
जब खाने में लगा चुका वह सैकड़ा
सोचा खाऊँ अब मैं बड़ा सा केकड़ा
केकड़ा था बुद्धिमान कठोर थी उसकी खाल
पल भर में समझ गया बगुले की चाल
अपने दाँतो से जकड़ ली उसकी गर्दन
केकड़े ने किया बगुले का मर्दन
कहानी बड़ी सीख देती है
छल -कपट से बचकर रहना सिखाती है

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Naresh Gurjar

Naresh Gurjar 3 years ago

lajawab

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