कहानीलघुकथा
पानी
इकलौती बेटी नीरा घर भर की लाडली ठहरी।सेवकों के जमघट के रहते उसने कभी एक ग्लास पानी भी भर कर नहीं पीया।यौवन की दहलीज़ पर कदम रखते ही ब्याह के लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते आने लगे। सिंघानिया खानदान का उत्सव पसन्द किया गया।ससुराल वाले अपनी बहु से मिलने आये हैं।दादी सास पूछ बैठती है, " यूँ तो घर में हर काम के लिए सेवक हैं किंतु औरो से कार्य करवाने के लिए भी खुद को सब काम आना चाहिए।नीरा बिटिया को आता ही होगा।"
यह सुन नीरा के होश उड़ गए। सबके जाने के बाद वह दादी से कहती है," वो लोग तो यही कहेंगे कि माँ ने कुछ सिखाया नहीं।" दादी आश्वस्त करती है," बिट्टो,अब सब कुछ छोड़ माँ व महाराज के साथ रसोई का काम सीखो।एक बात और ,अपनी मीठी वाणी से भी सबका दिल जीत सकती हो।" दादाजी बीच में बोल पड़े," गुड़िया दादी का मतलब है कि गंगा जाओ तो गंगादास बन जाओ और जमुना जाकर जमुनादास।"
दादी समझाती है,"यानी अपने नाम नीरा के अनुरूप सबके अनुसार खुद को ढाल लेना। बताओ तो भला ,कैसे बनोगी नीर ?"विज्ञान की छात्रा नीरा उत्तर देती है,"पानी को जिस पात्र में डालो वह उसी का आकार ले लेता है।और हाँ फ्रिज़ में पानी बर्फ बन जाता है एवं गर्म करने पर भाप।ठंडा होने पर फिर से पानी।' दादी हँसते हुए कहती है,"बस वही तो करना है।फिर तो अपने मधुर व्यवहार से सबकी चहेती बन जाओगी।"
सरला