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हाय ये कैसी मजबूरियाँ - Yasmeen 1877 (Sahitya Arpan)

कवितागीत

हाय ये कैसी मजबूरियाँ

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नायक-
आए हो बहारों की तरह ज़िन्दगी में ओ साथिया,
आओ करीब बैठो कर लूँ मैं दिल में जो हैं बतीयाॅं ।

नायिका-
सजते हैं ख़्वाब तेरे ही जागू में सारी-सारी रतियाॅं,
खोयी हूँ तेरे ही ख्यालों में ,छा रही ये कैसी मस्तियां।

नायक-
आ जाओ तुम अब पुकारे हैं दिल की ये गलियां,
बन गए हो तुम खुशियों की सदा मितवा ......

नायिका-
जानूं में हाले दिल तेरा ,चाहूं मैं तुझको मगर,
बताऊं मैं कैसे अपनी क्या हैं मजबूरियाँ ...

नायक-
आओ करीब बैठोकर लूं मैं दिल में जो हैं बतियां......

नायिका-
हो चुकी है देर बहुत, मुमकिन नहीं मिलन हमारे दरमियाँ
कर दी हैं नाम किसी और के अपनी सारी खुशियाँ......
दोनों एक-दूजे से
हाय कैसे सहें ये दूरियाँ
कितनी सितमगर हैं ये मजबूरियाँ ----मजबूरियाँ ....
( रो पड़ते हैं)
डॉ यास्मीन अली।

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