कवितालयबद्ध कविता
मैं कहीं खो रहा था उसकी यादों तले,
फिर कहीं आवाज़ मुझे यारों ने दी,
मैं डूब चुका इश्क़ के अश्क़ में,
हौले से आवाज बयारों ने दी,
मैं सुनाने लगा किस्सा प्यार का,
यारों की यारी,
और इज़हार का,
नहीं पता कब ख़्वाब हक़ीक़त में होने लगे,
फूल खिलने लगे,
दो दिल मिलने लगे,
कुछ बातें हुई,
मुलाकातें हुई,
जानता था प्यार करती है वो
फिर भी ये दिल कहने से डरता रहा,
कुछ यादें रहीं,
कुछ बातें रहीं,
न हम कह सके,
न वो कह सकीं
ख़ामोशी ने सब कुछ बयां कर दिया,
नैनों की नैनों से बातें हुई,
चुपके से नैनों ने सब कह दिया,
एक तोहफ़ा दिलों का मैं लाया हूँ,
इजाज़त हो कहूँ तुझको पाया हूं
ख्वाहिश है इतनी रहो पास मेरे,
मेरे हाँथ में ,
रहो साथ मेरे,
न हो जुदा न कोई कर पायेगा,
गर मुझे सनम तेरा साथ मिल जायेगा?,
ये दिल जोरों से अब धड़का है,
प्यार का हर अंग अब फड़का है,
सुनतें ही आँखों से आँसू गिरने लगे,
दिल और दिमाग़ फिर से लड़ने लगे,
वक़्त दिल की चोंट फिर खायेगा,
मजबूरी जीतेगी,
इश्क़ फिर से हार जाएगा,
तोहफ़ा ज़मीं पर फिर आएगा,
टूटे दिल को हँसी छिपा जाएगा,
इश्क़ इतना निकम्मा न उफ़्फ़ होगी,
हंसते हँसते दिल उस पर लुटा आएगा....
✍️ गौरव शुक्ला'अतुल'