Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
कम्बल - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

कम्बल

  • 271
  • 9 Min Read

कम्बल
---------
निष्ठा आज बहुत उदास थी । मां को गये हुये एक साल हो गया पर एक साल में एक मिनट भी ऐसा नहीं गया जब उनकी ममतामयी यादों से अलग हुई हो । बीते दिनों की यादें उसको उन्हीं पलों में लेगयी । जब वह 10 साल की थी उसका परिवार बहुत खुश था । प्यारे पापा ,मां और उसका चार साल का छोटा भाई शोभित । बहुत लाड़ली थी निष्ठा । वह शाहर में रहते थे और पापा का पूरा परिवार गाँव में । दादा ,दादी, चाचा ,चाचियां, और सब बच्चे । गर्मियों की छुट्टियों में जब वह गांव जाते तो खूब धमाचौकड़ी मचाते । दादा दादी की तो वह जान थी बच्चों में सबसे बड़ी जो थी । मां शिक्षित महिला थी बच्चों को अच्छे संस्कार देना ही वह अपना सबसे बड़ा दायित्व समझती थीं ,पर भाग्य की विडम्बना एक दिन पापा और छोटा भाई शोभित बाजार से स्कूटर पर आरहे थे एक ट्रक की टक्कर से हमेशा के लिये उनसे दूर हो गये । मां का बुरा हाल था । इस घटना से मां अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठी । दादा उनको गांव ले आये । बहुत दिल बहलाने की कोशिश की पर उनकी स्थिती में कोई सुधार नहीं
हुआ ।
एक कम्बल उन्होंने शोभित के लिये बनाया था । शोभित को भी कम्बल से बहुत प्यार था । वह कहता था मेरा कम्बल मां किसी को मत देना वह तुतला कर बोलता था कहता यह मां की गोद है। बस मां उसे गोद में लेकर थपकी देकर सुलाती और बड़बड़ाती रहती थी । उसको किसी को छूने नहीं देती थी । निष्ठा जैसे जैसे बड़ी हो रही थी मां की हालत देखकर बहुत दुखी होती ।
पूरा परिवार ही तो था जो निष्ठा की हिम्मत था । दादा चाहते थे की निष्ठा अब बड़ी होरही है। इसकी शादी कर दें तो हम अपने बेटे की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाये पर निष्ठा मां को इस हालत में छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी पर सबके समझाने पर वह राजी हुई। आज मां भी नहीं रही । आज उसने मां का सन्दूक खोला सन्दूक में कम्बल ऐसे रखा था जैसे शोभित सो रहा हो । निष्ठा कम्बल को गोद में लेकर फूट फूट कर रो रही थी ।
मां के हाथ का बुना वह स्वेटर,जिसमे बसी थी मां के हाथ की वह खुशबू और बसा था बेपनाह प्यार ।
स्व रचित
डा.मधु आंधीवाल

FB_IMG_1596978654566_1615702190.jpg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG