कविताअतुकांत कविता
घर का द्वार
खुला है
भीतर आ जाओ
फूलों से घर का
हर एक कोना सजा है
पतझड़ यहां बहारों से
मिलने आओ
दिल से
इतने प्यार से
किसी को कोई न्योता नहीं देता
स्वागत नहीं करता
इतनी मनुहार नहीं करता
मेरे प्रेम के प्रस्ताव को
तुम स्वीकार करो
इतनी बेदर्दी से मत ठुकराओ
आते हो तो आओ
नहीं आते तो
जाते हो तो जाओ
घर के बाहर मेरे
एक नदी भी बहती है
वह कहीं से आ रही है या
कहीं जा रही है
यह उसके लिए भी
एक पहेली है
मेरा मन हुआ तो
किनारे पे खड़ी खड़ी
मैं उसके पानी में
एक कागज की किश्ती को
बहा दूंगी
गर दिल में आया तो
लकड़ी की नाव में बैठ
खुद को इसकी लहरों के संग
विदा दूंगी
आओगे जो इस वाक्ये के
बाद तुम मेरे घर तो
घर में प्रवेश पाते ही
तुम पर आसमान में छाये
एक बादल की बारिश की
एक छोटी सी बूंद की फुहार सी
बरस जाऊंगी मैं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001