कविताअतुकांत कविता
आव्वाहन,,,,महान आत्माओं का
हे विवेकानंद पुनः आकर जगाओ
नौजवानों को लक्ष्य याद दिलाओ
क्या वे भूल गए अपने जोशीले इरादों को
हे भगत आज़ाद बिस्मिल कहाँ हो
वंदे मातरम का नारा फिर से गुन्जाओं
क्या भूल गए हैं फांसी के उन फंदों को
हे लाल पाल बाल और एक बार दहाडो
अन्याय सहना भी अन्याय है,,याद दिलाओ
जन्म सिद्ध जीने के अधिकारों को दुहराओ
संसद अक्षरधाम 26/११ के हमलों को
कभी उरी कभी पुलवामा-बरसते गोलों को
हे नेताजी आकर ईंट का जवाब पत्थर से दो
यह बसंत भूल याद करो वीरों के वसंत को
आतंकियों के हर मनसूबे का अंत करो
अभी नहीं कभी नहीं ईंटका जवाब पत्थर दो
बलिदानी सैनिकों को यूँ श्रद्धांजलि दो
सरला